Tue. Apr 16th, 2024

पिछले कुछ वर्षों में चीन ने नेपाल में मजबूत पैठ बना ली है। विशेषज्ञों का मानना है कि चीन नेपाल को भारत विरोधी भावनाओं के लिए उकसा सकता है, हालांकि वर्तमान गठबंधन सरकार का नेतृत्व नेपाली कांग्रेस कर रही है, जिसे भारत समर्थक माना जाता है और वह इसका विरोध कर सकती है। नेपाल में राणा शासन का इतिहास रहा है। राजा महेंद्र ने 1960 में बीपी कोइराला की चुनी हुई सरकार को बर्खास्त कर दिया और फिर उन्हें जेल में डाल दिया था, जो लोकतांत्रिक आंदोलन की शुरुआत का कारण बना और अंततः 1991 में संसद बहाल हुई। लेकिन वहां का लोकतंत्र अब भी कमजोर है और अपनी जड़ें नहीं जमा सका है, जिसे अपने संविधान का मसौदा तैयार करने और अपनाने में 24 साल लग गए।  वहां के संविधान की वैधता और भावना खतरे में है, क्योंकि राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी और गठबंधन सरकार के बीच सीधे टकराव के कारण गंभीर संकट खड़ा हो गया है। यह संकट वहां के सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश शमशेर राणा के खिलाफ संसद में लंबित महाभियोग के कारण और बढ़ गया है, जो सत्तारूढ़ गठबंधन द्वारा भ्रष्टाचार के आरोपों में लाया गया है। 

ऐसी खबरें हैं कि उन्हें नजरबंद रखा गया है, हालांकि सुप्रीम कोर्ट में उन्होंने कामकाज शुरू करने का विफल प्रयास किया था। इधर भारतीय थलसेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे ने हाल ही में आधिकारिक घोषणा की कि दोनों देशों के बीच मौजूदा सहमति के अनुसार 40,000 अग्निवीरों की भर्ती की भारत की योजना को रोकने के नेपाल के फैसले से कड़वाहट पैदा हो सकती है, क्योंकि दिल्ली इन पदों पर भर्ती कर सकती है।  ऐसे ही नेपाली राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने जब पांच लाख नेपाली पुरुषों एवं महिलाओं को लाभ पहुंचाने वाले नागरिकता संशोधन विधेयक पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया, तो गठबंधन सरकार से उनका सीधा टकराव हो गया। विधेयक के अनुसार, वे बच्चे वंश के आधार पर नेपाल के नागरिक होंगे, जिनके जन्म के समय उनके माता या पिता नेपाल के नागरिक थे।  इसी तरह अगर कोई नेपाली महिला नागरिक किसी विदेशी मूल के पुरुष से विवाह करती है, तो उसके बच्चे को भी नेपाली नागरिकता मिल जाएगी। केपीएस ओली के नेतृत्व वाली पिछली कम्युनिस्ट सरकार द्वारा पारित विधेयक में प्रावधान था कि नागरिकता पाने के लिए सात साल की प्रतीक्षा अवधि अनिवार्य है। लेकिन शेर बहादुर देउबा के नेतृत्व वाली मौजूदा गठबंधन सरकार द्वारा इस बिल में संशोधन किया गया था, जो विद्या देवी भंडारी के इनकार करने का मूल कारण प्रतीत होता है। 

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