योग का अर्थ होता हैं संबंध यह दो बातो को समझना आवश्यक है। जिसको हम मनुष्य कहते है। वह आत्मा और शरीर का संयुक्त रुप है। आत्मा चैतन्य है। और शरीर है। उसका रथ या वस्त्र जों जड है रथ के आधार से ही आत्मा अपना जीवन निभाते हैं इस सृष्टि पर रहने वाले सब मनुष्य वास्तव में आत्माए हैं हम आत्माओ के पिता हैं परम आत्मा शिव हमसब का लोक है
परमधाम या शांतिधाम जहा से हम इस पृथ्वी पर आकर शरीर को धारण कर चार युगो को पार करते हुए कर्मकर रहे हैं। द्वापर के बाद काम क्रोध लोभ मोह व अहंकार के वश पपकर्म करते आने के कारण संस्कार में असुरीपन आ गया हैं जिसको पतित पवन कह जाता हैं ।