ऐसे ही मन में विचार कीजिए यदि एक कथावाचन ही अपने प्रवचन से सब कुछ करवा दे तो साधु संत क्या करेगे़? अगर साधु संत ही सारे मनोकामनाएं पूरे कर देगे तो धर्मस्थापक आकर क्या करेगें? फिर धर्मस्थापक ही सब कुछ कर दे तब सोचिए देवी देवताओं का इतना गायन क्यो हैं? और यदि देवी देवताएं ही सभी प्राप्तिया करा देते तो भगवान का क्या महत्व रह जाएगा बस अब भगवान से ऊपर कोई नही वह हुआ सर्वोच्च
कोई साधु संत पीर पैगम्बर या धर्मस्थापक कभी ये कहकर नही गए कि यदा यदा हि धर्मस्य अर्थात् जब जब धर्म के ग्लानि होते हैं तब तब मै सभी मानव पर मात्र का उद्धार करने इस धरा पर अवतारित होता हूँ। कथन के लिए भगवान का ही गायन हैं