धान-परती क्षेत्रों को हरा-भरा बनाने हेतु कृषि में समेकित प्रबंधन जरूरी : डॉ. एस. के. चौधरी

पटना: पूर्वी क्षेत्रों के अधिकांश किसान धान की कटाई के उपरांत अपर्याप्त सिंचाई सुविधा, मिट्टी में नमी की कमी और उन्नत तकनीकों के समय पर उपलब्ध न होने के कारण कृषक अपनी भूमि को परती छोड़ देते हैं। जिसमें फसल सघनता/विविधता की अपार संभावनाएं हैं। उपर्युक्त तथ्यों के दृष्टिगत, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना में दिनांक 3 जनवरी 2025 को धान-परती क्षेत्रों में समुचित प्रबंधन के लिए दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का शुभारंभ हुआ। इस कार्यशाला में मुख्य अतिथि डॉ. एस. के. चौधरी, उप महानिदेशक (प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली ने भूमि अभिलेखों के डिजिटलीकरण, संसाधन संरक्षण प्रौद्योगिकियों, शून्य जुताई/अवशेष प्रबंधन, फसल पोषण एवं खरपतवार प्रबंधन, स्थाई एवं अस्थाई जल संरक्षण उपायों को अपनाने पर बल दिया, जिससे मिट्टी की नमी को संरक्षित किया जा सके और किसान रबी फसलों की बुआई समय पर सुनिश्चित कर सकें ।
उपर्युक्त कार्यक्रम में कई प्रमुख कृषि विशेषज्ञों और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद संस्थानों के निदेशकों ने भाग लिया, जिनमें डॉ. जे. एस. मिश्रा, निदेशक, भा.कृ.अनु.प – खरपतवार अनुसंधान निदेशालय, जबलपुर: डॉ. ए. सारंगी, निदेशक, भा.कृ.अनु.प – भारतीय जल प्रबंधन संस्थान, भुवनेश्वर: डॉ. एन.जी. पाटिल, निदेशक, भा.कृ.अनु.प – राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण एवं भूमि उपयोग नियोजन ब्यूरो, नागपुर::डॉ. सुनील कुमार, निदेशक, भा.कृ.अनु.प –भारतीय कृषि प्रणाली अनुसंधान संस्थान, मोदीपुरम: डॉ. प्रदीप डे, निदेशक, भा.कृ.अनु.प-अटारी, कोलकाता: डॉ. अनिल कुमार सिंह, निदेशक (अनुसंधान), डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, समस्तीपुर: डॉ. डी. पी. त्रिपाठी, निदेशक, बामेती::डॉ. नरेंद्र कुमार, प्रभागाध्यक्ष, भा.कृ.अनु.प – भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान, कानपुर: डॉ. एन .के. लेंका, प्रभागाध्यक्ष, भा.कृ.अनु.प – भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान, भोपाल: डॉ. बी. पी. भट्ट, प्रधान वैज्ञानिक (प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली: डॉ. आर. के जाट, बोरलॉग इंस्टीट्यूट फॉर साउथ एशिया और डॉ. एस. पी. पूनिया, अंतर्राष्ट्रीय मक्का और गेहूं सुधार केंद्र शामिल हुए। कार्यशाला में अधिकांश विशेषज्ञों ने धान-परती क्षेत्रों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए स्थिर जलवायु के अनुकूल और त्वरित उगाने वाली किस्मों, संसाधन संरक्षण प्रौद्योगिकियों, तनाव सहिष्णु फसल किस्मों, वर्षा जल संचयन, सूक्ष्म सिंचाई एवं इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स आधारित स्वचालित सिंचाई प्रणाली आदि विषयों पर विस्तार से चर्चा की।
इससे पूर्व, डॉ. अनुप दास, निदेशक, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना ने संस्थान के बिहार, झारखंड और छत्तीसगढ़ में 1000 हेक्टेयर से अधिक धान-परती क्षेत्रों को हरित बनाने में किए सार्थक प्रयास को साझा किया। उन्होंने यह भी बताया कि इन उपायों से दलहन और तिलहन की आपूर्ति की कमी को पूरा करने और किसानों की आय बढ़ाने में भी मदद मिलेगी। इसके साथ ही, मुख्य अतिथि डॉ. चौधरी ने स्वर्ण रथ (ई-रिक्शा) का उद्घाटन किया और एक प्रदर्शनी का भी अनावरण किया, जिसमें धान-परती क्षेत्रों में कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए नवीन प्रौद्योगिकियों और सतत रणनीतियों को प्रदर्शित किया गया है। कार्यशाला में संस्थान के संसाधन संरक्षण प्रौद्योगिकियों, फसल विविधीकरण और सहभागी दृष्टिकोणों पर कई तकनीकी बुलेटिनों का भी विमोचन किया गया। इस कार्यक्रम में देशभर से 100 से अधिक प्रतिभागी शामिल हुए। उपर्युक्त कार्यक्रम का समन्वय डॉ. राकेश कुमार, डॉ. संतोष कुमार, डॉ. रचना दूबे ने किया। डॉ. सौरभ कुमार के धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।

पटना: पूर्वी क्षेत्रों के अधिकांश किसान धान की कटाई के उपरांत अपर्याप्त सिंचाई सुविधा, मिट्टी में नमी की कमी और उन्नत तकनीकों के समय पर उपलब्ध न होने के कारण कृषक अपनी भूमि को परती छोड़ देते हैं। जिसमें फसल सघनता/विविधता की अपार संभावनाएं हैं। उपर्युक्त तथ्यों के दृष्टिगत, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना में दिनांक 3 जनवरी 2025 को धान-परती क्षेत्रों में समुचित प्रबंधन के लिए दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का शुभारंभ हुआ। इस कार्यशाला में मुख्य अतिथि डॉ. एस. के. चौधरी, उप महानिदेशक (प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली ने भूमि अभिलेखों के डिजिटलीकरण, संसाधन संरक्षण प्रौद्योगिकियों, शून्य जुताई/अवशेष प्रबंधन, फसल पोषण एवं खरपतवार प्रबंधन, स्थाई एवं अस्थाई जल संरक्षण उपायों को अपनाने पर बल दिया, जिससे मिट्टी की नमी को संरक्षित किया जा सके और किसान रबी फसलों की बुआई समय पर सुनिश्चित कर सकें ।
उपर्युक्त कार्यक्रम में कई प्रमुख कृषि विशेषज्ञों और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद संस्थानों के निदेशकों ने भाग लिया, जिनमें डॉ. जे. एस. मिश्रा, निदेशक, भा.कृ.अनु.प – खरपतवार अनुसंधान निदेशालय, जबलपुर: डॉ. ए. सारंगी, निदेशक, भा.कृ.अनु.प – भारतीय जल प्रबंधन संस्थान, भुवनेश्वर: डॉ. एन.जी. पाटिल, निदेशक, भा.कृ.अनु.प – राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण एवं भूमि उपयोग नियोजन ब्यूरो, नागपुर::डॉ. सुनील कुमार, निदेशक, भा.कृ.अनु.प –भारतीय कृषि प्रणाली अनुसंधान संस्थान, मोदीपुरम: डॉ. प्रदीप डे, निदेशक, भा.कृ.अनु.प-अटारी, कोलकाता: डॉ. अनिल कुमार सिंह, निदेशक (अनुसंधान), डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, समस्तीपुर: डॉ. डी. पी. त्रिपाठी, निदेशक, बामेती::डॉ. नरेंद्र कुमार, प्रभागाध्यक्ष, भा.कृ.अनु.प – भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान, कानपुर: डॉ. एन .के. लेंका, प्रभागाध्यक्ष, भा.कृ.अनु.प – भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान, भोपाल: डॉ. बी. पी. भट्ट, प्रधान वैज्ञानिक (प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली: डॉ. आर. के जाट, बोरलॉग इंस्टीट्यूट फॉर साउथ एशिया और डॉ. एस. पी. पूनिया, अंतर्राष्ट्रीय मक्का और गेहूं सुधार केंद्र शामिल हुए। कार्यशाला में अधिकांश विशेषज्ञों ने धान-परती क्षेत्रों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए स्थिर जलवायु के अनुकूल और त्वरित उगाने वाली किस्मों, संसाधन संरक्षण प्रौद्योगिकियों, तनाव सहिष्णु फसल किस्मों, वर्षा जल संचयन, सूक्ष्म सिंचाई एवं इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स आधारित स्वचालित सिंचाई प्रणाली आदि विषयों पर विस्तार से चर्चा की।
इससे पूर्व, डॉ. अनुप दास, निदेशक, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना ने संस्थान के बिहार, झारखंड और छत्तीसगढ़ में 1000 हेक्टेयर से अधिक धान-परती क्षेत्रों को हरित बनाने में किए सार्थक प्रयास को साझा किया। उन्होंने यह भी बताया कि इन उपायों से दलहन और तिलहन की आपूर्ति की कमी को पूरा करने और किसानों की आय बढ़ाने में भी मदद मिलेगी। इसके साथ ही, मुख्य अतिथि डॉ. चौधरी ने स्वर्ण रथ (ई-रिक्शा) का उद्घाटन किया और एक प्रदर्शनी का भी अनावरण किया, जिसमें धान-परती क्षेत्रों में कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए नवीन प्रौद्योगिकियों और सतत रणनीतियों को प्रदर्शित किया गया है। कार्यशाला में संस्थान के संसाधन संरक्षण प्रौद्योगिकियों, फसल विविधीकरण और सहभागी दृष्टिकोणों पर कई तकनीकी बुलेटिनों का भी विमोचन किया गया। इस कार्यक्रम में देशभर से 100 से अधिक प्रतिभागी शामिल हुए। उपर्युक्त कार्यक्रम का समन्वय डॉ. राकेश कुमार, डॉ. संतोष कुमार, डॉ. रचना दूबे ने किया। डॉ. सौरभ कुमार के धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।
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