तेज रफ्तार जिंदगी में कभी कभी पीछे होने के दुख से तनाव होना आम बात है। पर प्रकृमित में सबकुछ धीमे धीमे ही होता है। चाहे चहे बीज से फल का बनना हो या फिर समुद्र से पानी का भाप उडना और बारिश बनकर वापस धारती पर गिर जाना हो। गति में धीरे धीरे से सामंजस्य बिठाना और खुश होकर जीना एक कला है। धीमे जीवन का अर्थ आलस्य और कम नही बल्कि सही दिशा में एकाग्र होकर हरा काम करने से है। इससे खुशी भी मिलेगी। स्लो लिविंग यानी इत्मीनान से जीने की अवधारण का जन्म भले ही पश्चिम में हुआ हो लेकिन योग आयुर्वेद में बताए स्वास्थ्य सूत्र सदियों पहले ही भारतीयो की जीवन शैली का हिस्सा रहे है। दैनिक जीवन के छोटे छोटे कामो को यंत्रवत करने की आदत बोरियत पैदा करती है। क्योकि ऐसे में जागरुकता जीरो हो जाती है।
हालांकि इस अवस्था में किया काम गुणवत्ता भरा नही हो सकता। पर अपनी जागरुकता का गियर बदल कर गुणवत्ता में भी अपेक्षित बदलाव लाया जा सकता है। डच दर्शन में इसें निकसेन कहा जाता है। कुछ नही करना बस होना। हफ्ते भर की भागदौड़ के बाद आखिरी दिन मन और शरीर को आराम देने का यह प्रचलित तरीका है। जिसमें मोबाइल या लैपटाँट को नही चलाना और खाली रहकर अपने मन को दौड़ को देखना शामिल है। सच्ची खुशी के लिए यह खुद से संगीत प्रवाह मिलाने जैसा होता है।