दुनिया के दलदल में फंसकर कुछ न पाओगे।
स्वयं आत्मा पर तुम, और ही दाग लगाओगे।।
ब्गुला बुद्धि वाले भी, सारी दुनिया में भरे पडे।
अगर गौर से देखो तो वास्तव में सब मरे पडे।।
चरित्र बड़ा बुरा इनका, अवगुण की गंद खाते।
सुअर समान कीचड में स्वयं को ही लिपटाते।।
फर्क देखो हंस बगुले में त्वचा दोनों की गोरी।
ब्गुला मन का मैला है, हंस की बुद्धि है कोरी।।
ब्गुले रहते दलदल में, उपवन की सोभा हंसं।
गौर से खुद को पहचानो, क्या है तुम्हारा वश।।
बुद्धि का बगुलापन तुम्हे चरित्रहीन बनायेगा।
अवगुणों के दलदल में ज्यादा तुम्हे धंसायेगा।।
सबके मन बुद्धि में केवल भरे हैं पाच विकार।
अपने अंदर देखो, तो पाओगे तुम यही विकार।।
अवगुणों की कौड़िया फेको एक एक चुनकर।
जाल टूटता जायेगा जो रखा है तुमने बुनकर।।
बनेगा जो सम्पूर्ण पवित्र हं वही कहलायेगा। हीरे तुल्य उसका जीवन सबको नजर आयेगा।।
चुन लो हंस चरित्र ये अवगुण सभी मिटाएगा।
साधारण मानव से तुम्हे ये देवतुल्य बनायेगा।।