आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वती के गुरु स्वामी बिरजानंद जन्म से ही अंधे थे। वे मथुरा में रहते थे रोज प्रातः यमुना नदी में नाहने जाया करता था एक बार जब वह नाह रहे थे। तो यमुना के तट पर घुम रहे दो अग्रेजो सैनिको में किसी बात पर बहस हो गई। बहस ने जब उग्र रुप धारण किया तो दोनों सैनिको में मार पीट हो गया यह बात उनके कमाण्डर तक पहुचा कमाण्डर के सामने दोनो सैनिक एक दूसरे पर आरोप लगाने लगा और यह निर्णय करना मुश्किल हो गया कि गलती किसी थी कमाण्डर ने उनसे पूछा कि क्या उस समय तुम्हारे आसपास कोई चश्मदीद था जिसने तुम्हे झगडते हुए देखा हो? दोनो कहा कि हां एक संत उस समय पास में ही यमुना नदी में नाह रहे थे और उन्होंने अवश्य ही हमें झगडते हुए देखा होगा। कमाण्डर संत बिरजानंद के पास गया और उनसे आग्रहपूर्वक हिन्दी में बात चित किया अभी कुछ समय पहले जब आप नदी में नहा रहे थे।
तो मेरे दो सैनिको में झगड़ा हुआ था। क्या आप बता सकते है। कि झगडे के शुरुआत किसने किया था। बिरजानन्द ने कहा कि मै अंधा हूँ देख नही सकता परन्तु वे एक दुसरे से जो शब्द कह रहे थे वे मैने सुने थे चूंकि मै उनकी अग्रेजी की भाषा को नही जानता अतः किसकी गलती थी यह मैं नही बता सकता। हां आप कहे तो मै उनके बोले गए शब्दो को सुना सकता हूं और बिरजानन्द ने उन सैनिको की पूरी अंग्रेजी की वार्ता हूबहू सुना दी कमाण्डर उनके स्मरण शक्ति देख कर चंकित रह गया। अंधे व्यक्तियो को मौन में रहने का अच्छा अभ्यास होता है। और इससे उनकी स्मरण शक्ति काफी बढ़ जाती है।