बेतिया: पश्चिम चम्पारण जिला के बेतिया पुलिस अंतर्गत स्थित मुफ्फसिल थाना कांड संख्या 211/2023 में सूचक पदाधिकारी ही साक्ष्य प्रस्तुत करने में कर रहें हैं असहयोग। यूं कहें कि साक्ष्य के अभाव में प्राथमिकी सूचक और अनुसंधान सबके लिए सिरदर्द बन रहा है। जिसका परिणामस्वरुप पहले अनुसंधानकर्ता को ब्यान देने से भाग रहे और अब अनियमितता से संबंधित साक्ष्य देने से दूर भाग रहे हैं, सूचक पदाधिकारी। सम्भवतः इसलिए मुफ्फसिल थाना में दर्ज कांड के अनुसंधानकर्ता ने सीआरपीसी की धारा 91 का प्रयोग कर डीआरडीए, मनरेगा के जिला कार्यक्रम पदाधिकारी को नोटिस जारी कर कांड से सम्बन्धित कागजातों को उपलब्ध कराने का आग्रह किया है। जिसमें अनुसंधानकर्ता ने कांड के अनुसंधान को बाधित होने का हवाला दिया है। परन्तु सम्बंधित मनरेगा विभाग के पदाधिकारी व विभाग के कानों तक उन कागजातों को प्रस्तुत करने के लिए जूं तक नहीं रेंग रहा है। जिसकी जांच विभाग स्तर से कराए जाने के बाद प्राथमिकी दर्ज की गई। विभागीय जांच प्रतिवेदन अनुसंधानक को उपलब्ध कराया जा सकता है किंतु अनुसंधान पदाधिकारी के पत्र प्रेषित करने के बाद भी साक्ष्य उपलब्ध नहीं कराया गया है। उपर्युक्त कांड दर्ज कराने वाले पदाधिकारी अनुसंधान में (शिकायतकर्ता विभाग) स्वयं संदिग्ध जांच के घेरे में बताए जा रहे है। अनियमितता की जांच, प्राथमिकी, अब अनुसंधान से दूरी बहुत कुछ सोचने और बताने के लिए काफी दिखाई दे रहा है। यदि कागजात नहीं रहे तो प्राथमिकी दर्ज कराने के पीछे का रहस्य क्या हो सकता है। यदि कागजात है तो अनुसंधान बाधित करने की पीछे क्या मंशा हो सकती है… यह यक्ष प्रश्न है। आरटीआई कार्यकर्ताओं के सूचना के अधिकार अधिनियम अंतर्गत जवाब और जवाब के लिए अपील भी किया गया है, परन्तु डीआरडीए विभाग को ना अनुसंधान से मतलब है और ना ही जनता को दिए गए सूचना के अधिकार अधिनियम अंतर्गत के जवाब देना उचित समझते हैं।