बीते हुए समय में हमने क्या किया और भविष्य में हम क्या करना चाहते है। यह सोचना मानाव का स्वभाव है। इन सब बातो में हम आत्मा के भूमिका को भूल जाते हैं और यह सोचने लगते हैं कि जो मै कर रहा हूँ वो मैं शरीर ही कर रहा हैं क्या करुॅ कैसे करु इसे कैसे करना चाहिए आदि तो सब कुछ करने पर केद्रिंत हो जाता हैं और इसीलिए खुशी भी करने पर केद्रिंत हो जाते है।
फिर हम सोचते है। कि ये करेगें ये होगा तब मुझे खुशी होगे। राजयोग मे हमे सिखाता है। कि हमरे शरीर नही है। हम एक आत्मा हैं आत्मा के खुशी किसी चीज पर निर्भर रहता है।