आशा कार्यकर्ता और फैसिलिटेटर को मिले सरकारी कर्मी का दर्जा
बेतिया :पश्चिम चम्पारण जिला की आशा कार्यकर्ताओं के आंदोलन को संबोधित करते हुए माले नेता सुनील कुमार राव ने कहा कि आशा कार्यकर्ता से सरकार कई प्रकार का कार्य सम्पादित करा रही है। लेकिन जब मानदेय या वेतन की बात आती है तो हाथ खड़ा कर एक हजार रुपया मासिक पारितोषिक थमा देती है। यह राशि न्यूनतम मजदूरी से काफी कम है। अर्थात सरकार इन्हें बंधुआ मजदूर रखे हुई है। इसलिए आशा कार्यकर्ताओं की मांग है कि 1 हजार में दम नहीं, 21 हजार से कम नही। केंद्र सरकार की योजना है परंतु जिला के सांसद का कहीं अता-पता नहीं है ।आशा कार्यकर्ताओं व आशा फैसिलिटेटर के आंदोलन में आना तो दूर की बात आशा दीदी के लिए उनका एक बयान भी नहीं आया। आशा कार्यकर्ताओं ने कहा कि सरकार हड़ताल नही तोड़ने पर नौकरी से हटाने की बात कर रही है। लेकिन ऐसी धमकियों से आशा डरने वाली नहीं है। जब तक मांगे पुरी नहीं हो, तब तक आंदोलन जारी रहेगा।आंदोलन को संबोधित करते हुए भाकपा माले के सुरेंद्र चौधरी ने कहा कि मोदी की सरकार आशा बहनो को बंधुआ मजदूर से भी बदतर समझती है।आशा को न ही न्यूनतम वेतन, न कोई सामाजिक सुरक्षा, न कोई पोशाक राशि, न कोई बैठने का कार्यालय है। लेकिन काम चालीस प्रकार का लेती है। ये श्रम का शोषण नहीं तो और क्या है। भाकपा माले आशा कार्यकर्ताओं के आंदोलन व इनके हक अधिकार की लड़ाई में साथ खड़ी है । आंदोलन में किरण देवी, गायत्री देवी, बबिता देवी, रीता देवी, कमरूल नेशा, बैधनाथ राम, किशोरी यादव, मनोज भगत, जगदपा देवी, शकीला देवी, सरोज देवी, बेबी देवी, उमरावती देवी, आशा देवी, सुशीला देवी, सुनैना देवी, सुशीला देवी, उर्मिला देवी, जुलैखा खातून मौजूद रहे।
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