हमारे जीवन में इस दौर में अपने पराए होने का स्वाद रसेंद्रिय से प्राप्त अनुभव, बदल गया है। रिश्तों की आकृति, रूप बदल गया अब तो जो काम में आ जाए वही अपना है। जो काम ना आए वो पराए से भी पराया हो जाता है। पहला अपना लोग एक स्थान सबसे बडी संख्या में कही पे पाए जाते है। तो उनका नाम था विवाह शुभ आयोजन में । पहले की शादियों में बजट के आधार पर तय होता था कि कितना मेहमान बुलाएं जाएं।
और बहुत सारे लोग बजट के आधार पर मेहमान बुलाते थें। बाद में बीमारी के कारण सगा सबंध कम या ज्यादा हुए लेकिन अब तो बजट से चार गुना ज्यादा खर्च करने पर भी शादियों में सीमित मेहमान बुलाते है। और भी कुछ शादियों मे ऐसा भी होता है। जिनमे 5 से 10 उत्सवों में से एक पर ही इतना पैसा खर्च कर दिया जाता है। आज के दुनिया में हर चीज का महगाई बडते जा रहा है। छोटे गांवो के घरो में अपने बजट के हिसाब से शादिया करते है।