बेंगलूरु. आरपीसी लेआउट विजयनगर स्थित समता भवन में विराजित साध्वी दिव्यदेशनाश्री ने कहा कि जीवन में हम यतना धर्म का पालन कर अर्थात हमारे कार्यों से जीव हिंसा नहीं हो, ऐसी अहिंसक भावना के साथ विवेकपूर्वक कार्य करने से बहुत ही सरल तरीके से धर्म की आराधना कर सकते हैं। जैसे माता-पिता अपने छोटे बच्चे को अंगुली पकडक़र चलना सिखाते हैं, ठीक उसी प्रकार से तीर्थंकर भगवंत, गुरु भगवंत हमें जिनवाणी रूपी उंगली पकड़ कर जीवन यापन की कला एवं यतना धर्म के महत्व को समझाते रहे हैं। उन्होंने शास्त्रों में वर्णित यतना का वर्णन करते हुए कहा कि एक बार गौतम स्वामी ने भगवान महावीर स्वामी के प्रश्न पूछ लिया कि हे प्रभु अगर संसार की हर क्रिया के अंदर कर्म बंध हंै, तो हम कैसे जीएं? कैसे कैसे उठें, कैसे बैठें, जिससे हमारे पाप कर्म का बंध नहीं हो। इस प्रश्न का प्रभु महावीर ने उत्तर दिया कि जयं चरे, जयं चि_, जयं मासे, जयं सए, अर्थात चलना, फिरना, उठना, बैठना आदि जीवन की हर क्रिया में हम सूक्ष्म से सूक्ष्म जीव के प्रति रक्षा की भावना एवं विवेक रखते हुए सावधानी पूर्वक चलते हैं, उठते हैं, बैठते हैं, सोते-जागते हैं तो कर्म का बंध नहीं होता है।
इससे पूर्व साध्वी नवकारश्री ने अपने कहा कि हमें श्रद्धा भाव से देव गुरु धर्म की आराधना एवं आत्म साधना अवश्य करनी चाहिए।