कलियुग के अन्त और सतयुग के आदि के संगम के समय पर हमारे परमरक्षक परमपिता परमात्मा शिव अपने कल्प पूर्व किये वायदे अनुसार निराकारी दुनिया परमधाम से साकार ब्रहा्रा तन का आधार लेकर अवतरित होते है। इस विकारों की जेल से हम आत्माओ को छुडाने के लिए हमे ज्ञान का तीसरा नेत्र देेते राजयोग सिखाकर हमारे 63 जन्मो के पाप कर्मो को भस्म करवाते और पावन बनाकर वापिस परमधाम ले चलते है। हमें ईश्वरीय ज्ञान देकर स्व परिवर्तन से विश्व परिवर्तन की विधि बता कर आने वाले सतयुग (स्वर्ग) के योग्य बनाते है। जो आत्माएं अवतरित हुए परमात्मा को पहचान कर उसकी श्रीमत पर चल पावन और शक्तिशाली बनती हैं, वही परमधाम जाकर फिर सतयुग स्वर्ग का राज्य भाग्य अपने पुरुषार्थ अनुसार प्राप्त करेगी। जो आत्माएं पावन नही बनेंगी वे चाहे गृह युद्ध चाहे प्राकृतिक आपदाये और चाहे आणविक युद्ध द्वारा शरीर छोड़ने पर विवश होगी और उन्हे अपने पापकर्मो का प्रायच्श्रित धर्मरापुरी में करना पडेगा फिर वे परमधाम में विश्रान्त अवस्था में रहेगी।