हरेक के जीवन मृत्यु से जुडा हुआ हैं। जीवन अगर रेत का घर है, तो मृत्यु उसकी समतल धरा है, जीवन अगर कागज की कश्ती हैं, तो मृत्यु उस की पतवार हैं। मृत्यु मानव जीवन का ऐसा सनातन सत्य है ऐसा अभिन्न अंग हैं। जिसे चाह कर भी हम अलग नही कर सकते। इस सनातन सत्य को हमें स्वीकारना ही होगा। मनुष्य जीवनयापन के दौरान अनेक विकट परिस्थितियो का सामना करता है। अपना स्थान पाने के लिए उस स्थान को बनाए रखने के लिए जीत के लिए लक्ष्य हासिल करने के लिए परिवार के लिए अनेक संघर्षो तनावो से गुजरते हुए जीए जाता है परन्तु इन सब के बीच मृत्यु की ठोस वास्तविकता से आंखे फेर लेता है। मानव उसे पहचानता ही नही हैं। जीवन की इस आपाधापी में कौन सा एक पल होगा। जो कि मृत्यु के समीप होगा, हमे पता ही नही होता है। उसकी ओर हम थोडा भी ध्यान नही देते हैं