बस्तर के दुर्गम जंगलो मे लड़ाई सिर्फ नक्सलियो से नहीं चल रही है, बल्कि वहां कई और कई मोर्चे भी है। इसमे बडी जंग है। भीतरी गांवो मे बच्चो को कुपोषण से बचाने की। इसी लडाई का अहम हिस्सा बनी हुई हैै नारायणपुर से लगे कंडेनार गांव मे 10 साल से पदस्थ आंगनबाडी कार्यकर्ता रजबती बघेल। उसका संघर्ष भी गजब का है। बस्तर के सुदूर गांव मे जहा शासन प्रशासन की पहुच नही है, जहा जाना आसान नही है, वही कार्यक्षेत्र है रजबती का। बताती हैं कि सीजन के दौरान गांव के लोग महुआ बीनने बच्चो के साथ सुबह से ही घने जंगलो के निकल जाते है। बच्चे उन्ही के साथ जाते है। आंगनबाडी आते ही नही। तब रजबती और सहायिका श्यामवती जंगलो से निकल पड़ती है, बच्चो की तलाश मे। वह कंड़ेनार ही नही, बब्कि बहेबेडा और उरेवारी जैसी गांवे के ज्यादातर बच्चो का जरूरी डेटा जंगलों मे ही इकट्ठा करनक दौरान बच्चो का वजन करती है। उचाई नापती है और डेटा राजिस्टर मे दर्ज करती है।