Wed. Mar 12th, 2025

मातृभाषा दिवस पर….…

बिहार की लोक भाषाओं का गौरव और संरक्षण

वरीय पत्रकार अनूप नारायण सिंह की विशेष रिपोर्ट…

CENTRAL DESK

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मातृभाषा सिर्फ अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, इतिहास और पहचान की आत्मा होती है। प्रतिवर्ष 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य लोक भाषाओं का संरक्षण और संवर्धन है। बिहार की मिट्टी भाषाई और सांस्कृतिक विविधता से समृद्ध है, जहां भोजपुरी, मगही, अंगिका, बज्जिका और मैथिली जैसी लोकभाषाएं सदियों से जनजीवन का अभिन्न अंग रही हैं।

बिहार की लोकभाषाओं का गौरवशाली इतिहास रहा है

बिहार की लोकभाषाएं केवल संचार का माध्यम नहीं, बल्कि लोकगीत, साहित्य, नाटक और सांस्कृतिक परंपराओं की वाहक भी हैं। भोजपुरी, मगही, अंगिका, बज्जिका और मैथिली में समृद्ध साहित्य की कालजयी रचनाएं है, जो बिहार की संस्कृति और परंपराओं को जीवंत बनाकर रखती है।

भोजपुरी: एक वैश्विक पहचान बनाने वाली भाषा

भोजपुरी ने अपनी लोकप्रियता और प्रभाव से देश ही नहीं, बल्कि विश्व स्तर पर भी अपनी पहचान बनाया है। भोजपुरी सिनेमा, लोकगीत, लोक नाट्य और साहित्य के कारण भोजपुरी भाषा प्रवासी भारतीयों के साथ जीवंत बनी हुई है। वैश्विक स्तर पर नेपाल,फिजी, मॉरीशस, त्रिनिनाड, सूरीनाम और गुयाना जैसे देशों में राजनीतिक मान्यता पूर्वक भोजपुरी बोली जाती है, जो ऐतिहासिकता और वैश्विक महत्ता को प्रदर्शित करता है।

मगही: बुद्ध और महावीर की भाषा

मगही भाषा का सम्बंध गौतम बुद्ध और भगवान महावीर से जुड़ा हुआ है। बिहार के मगध क्षेत्र में बोली जाने वाली इस भाषा का ऐतिहासिक महत्व अत्यंत गहरा है। मगही साहित्य, खासकर लोकगीतों और कथाओं के माध्यम से, बिहार की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित कर रही है।

अंगिका: अंग प्रदेश की पहचान

अंगिका, जिससे भागलपुर और आसपास के क्षेत्रों में बोला जाता है, बिहार की एक प्राचीन भाषा है। इस भाषा की अपनी लोककथाएं, गीत और साहित्य हैं, जो आज भी बिहार के सांस्कृतिक परिदृश्य का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

बज्जिका: लोकसंस्कृति की मजबूत कड़ी

बज्जिका मुख्यतः वैशाली, मुजफ्फरपुर और आसपास के क्षेत्रों में बोली जाती है। बज्जिका के लोकगीत, विवाह गीत और अन्य सांस्कृतिक परंपरा बिहार की लोकसंस्कृति की एक मजबूत कड़ी बनाती हैं।

मैथिली: बिहार की पहली संवैधानिक भाषा

मैथिली को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया, जिससे इसकी प्रतिष्ठा और महत्ता और बढ़ गई। विद्यापति के काव्य और मैथिली साहित्य ने इसे बिहार की सबसे समृद्ध भाषाओं में से एक बना दिया। दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी, अररिया, पुर्णिया, मधेपुरा, मिथिलांचल व नेपाल में बोली जाने वाली मैथिली साहित्यिक और सांस्कृतिक रूप से भी विशेष दर्जा प्राप्त है।

भाषाओं के संरक्षण की आवश्यकता

वर्तमान डिजिटल युग में अंग्रेजी और हिंदी के बढ़ते प्रभाव के कारण लोकभाषाओं का अस्तित्व संकटग्रस्त होता जा रहा है। नई पीढ़ी अपनी मातृभाषा से दूर होती जा रही है, जो चिंता का विषय है। मातृभाषा दिवस हमें यह स्मरण दिलाता है कि हमें अपनी लोकभाषाओं को संजोकर रखना है और इसे अगली पीढ़ी तक पहुंचाना है।

भाषाओं के संवर्धन के लिए आवश्यक कदम

1. शिक्षा में लोकभाषाओं को बढ़ावा देना – प्राथमिक शिक्षा में भोजपुरी, मगही, अंगिका, बज्जिका और मैथिली जैसी भाषाओं को शामिल करना आवश्यक है, जिससे नई पीढ़ी अपनी मातृभाषा से जुड़े रहें।

2. साहित्य और सिनेमा में प्रोत्साहन – क्षेत्रीय भाषाओं में अधिक साहित्य, फिल्मों और डिजिटल कंटेंट का निर्माण किया जाए, जिससे नई पीढ़ी अपनी भाषा से जुड़ी रहे।

3. सरकारी संरक्षण और नीतियां – राज्य और केंद्र सरकार को लोकभाषाओं के संरक्षण के लिए विशेष योजनाएं बनानी चाहिए।

4. सामाजिक जागरूकता – हमें अपने घरों और समाज में लोकभाषाओं को बोलने और बढ़ावा देने की परंपरा को बनाए रखना होगा।

निष्कर्ष

भाषा सिर्फ शब्दों का समूह नहीं होती, बल्कि यह हमारी संस्कृति, परंपरा और अस्तित्व की पहचान होती है। मातृभाषा दिवस के अवसर पर हमें संकल्प लेना चाहिए कि हम अपनी लोकभाषाओं का सम्मान करेंगे, इन्हें बोलेंगे, लिखेंगे और अगली पीढ़ी तक पहुंचाएंगे।

“अगर अपनी मातृभाषा को नहीं बचा सके, तो अपनी संस्कृति और पहचान भी खो देंगे।”
इसलिए आइए भोजपुरी, मगही, अंगिका, बज्जिका और मैथिली को संजोएं और गर्व से अपनाएं।

– अनूप नारायण सिंह
– (लेखक बिगड़ दो दशकों से पत्रकारिता में सक्रिय है तथा वर्तमान में फिल्म सेंसर बोर्ड, सूचना प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार के एडवाइजरी कमेटी के सदस्य हैं)

सम्पादित आलेख…..apnibaat.org

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By Awadhesh Sharma

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