Wed. Mar 12th, 2025

ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोए औरन को शीतल करे आपहू शीतल होय। शब्द संभल कर बोलिए शद के हाथ ना पाव एक शब्द औषध बने एक शब्द करे घाव।
कमान से निकला तीर और मुख से निकला बोल भी वापस नही आते पहले तोलिए फिर बोलिए। इस तरह के कितने ही सुदंर दोहे व सुवाक्य हम प्रतिदिन अखबारो में पुस्तको में सोशल साइट्स में पढ़ते या फिर संत महात्माओ के प्रवचनो में सुनते हैं परंतु यदा कदा सर्वत्र देखते हैं कि इस तरह के महान विचारो के बाद भी हम क्रोधवश कडवे शब्दो को बोलके अनेको के ह्दय को दुखी कर देते है।

और खुद भी शक्तिहीन हो जाते है। आच्श्रर्य तो तब लगता है। जब बुद्धिमान , जिम्मेदार या महान समझे जाने वाले लोग भी क्रोधवश अपने से छोटो या फिर नौकरो पर इस तरह के कडवे वचनो का उच्चारण समय प्रति समय करते रहते है। जो बाते चार शब्दों में हो जाती है। उनके लिए सैकडो कड़वे शब्दों का प्रयोग कर अपनी शक्ति व्यर्थ गंवाते रहते है। कहा जाता है कि चोट का घाव तो भर जाता है। लेकिन कडवे वचनो का घाव जीवन भर नहीं भरता है।

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