जूता बनाने वाले रवि नाम के एक व्यक्ति ने सबेरे उठकर देखा कि उसकी छोटी सी झोपडी के पीछे में कमल का एक सुन्दर सा फूल खिला है। उसने उस बेमौसम के खिले फूल को तोडा और बाजार के तरफ चल दिया कि शायद इसके बदले कोई पाँच ही रुपये दे दे। रास्ते में उसने देखा नगर सेठ की सवारी आ रही थी नगर सेठ नें रवि के हाथ में बेमौसम खिले कमल को देखा तो कहा आज नगर में बुद्ध का आगमन है। रवि तुम एक हजार स्वर्णमुद्राएँ ले लो और यह फूल हमे देदो इसे मै बुद्ध के चरणो में अर्पित करुँगा। रवि तो उसे पाँच रुपए में बेचने चला था पर अब जब बुद्ध के आगमन का पता चला तो उसने साफ मना कर दिया और आगे बढ़ गया। आगे मंत्री की सवारी आती दिखी मंत्री ने भी रवि के हाथ में बेमौसम का खिला सुन्दर फूल देखा और उस पर 10 हजार स्वर्ण मुद्राएँ आँफर की मगर रवि बेचने को तैयार न हुआ। आगे बढ़ते रवि ने देखा कि राजा की सवारी सामने आ रही है। राजा वह खूबसूरत फूल इतना भाया कि उसने एक लाख स्वर्णमुद्राओ की पेशकश की पर रवि देने को राजी न हुआ। राजा मंत्री और सेठ तीनो ने उससे पूछा तुमको हम इतने धन दे रहे थे तुम्हारी पीढ़ियों की द्ररिद्रता दूर हो सकती थी पर तुमने स्वीकार नही किया। क्यो? रवि ने कहा एक तपस्वी की वर्षो की तपस्या से रंगी दृष्टि और आशीर्वाद पाना मुझे लाखो की आमदनी से बड़ा लगा।