नाश रहित मै आत्मा, रुप मेरा बदला न जाये,
नित्य और अविनाशी, मुझे नष्ट किया न जाये।
पंच तत्वो का मेरे ऊपर , चडता न कोई प्रभाव,
सुख शांति और पवित्रता ही, मेरा मूल स्वभाव।
सम्भव कभी न होगा, कर पाना मेरा विच्छदन,
स्वतन्त्र मेरा अस्तित्व मै हूँ सदा ही निर्बन्धन।
कर्म करने को मिला मुझको देह रुपी साधन,
जीवन रुपी यात्रा में तन मेरा उपयोगी वाहन।
सुन्दर चैतन्य आत्मा का, जब से अनुभव पाया,
विकारो के हर बन्धन से स्वयं को मैने छुड़ाया।
भौतिक लाभ हानि से मन नही विचलित होता,
सर्व दूद्ो से रहित को शोक अनुभव न होता।