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रोड नहीं तो वोट नहीं, ग्रामीणों का ऐलान, मतदान का बहिष्कार

सैकड़ों महिलाओं ने सड़क पर उतरी किया प्रदर्शन, सरकार के विकास का दावा खोखला

अनमोल कुमार की रपट

भारत की स्वतंत्रता के 77 वर्ष बाद भी बिहार की राजधानी पटना स्थित पाटलिपुत्र संसदीय क्षेत्र में एक गांव ऐसा भी है जहां विकास की किरण अबतक नहीं पहुंच सकी है। बिहार में विकासपुरुष की सरकार दो दशक पूरा करने जा रही है। बताया जाता है कि लगभग दो हजार की जनसंख्या वाले गांव में सड़क नहीं है। देश में तीव्र गति से हो रहे विकास का दावा केंद्र और राज्य की डबल इंजन की सरकार करते नहीं थकती। विगत 10 वर्ष की  नरेंद्र मोदी सरकार एवं बिहार में लाभग 19 वर्ष से नीतीश कुमार की डबल इंजन की सरकार विकास के दावों को लेकर जुमला बाजी करते नहीं थकती, अलबत्ता वहा के भोले भाले ग्रामीणों का भला कसूर रहा है, जो सड़क बिजली, पानी जैसे बुनियादी सुविधाओं से अबतक दूर रखा गया। ऐसे में वहां की सैकड़ों ग्रामीण महिलाओं ने सड़क पर उतर कर आर पार लड़ाई का ऐलान करते हुए, “रोड नहीं तो वोट नहीं “के नारा लगाते हुए लोकसभा चुनाव का बहिष्कार करने की घोषणा कर दिया।

जी, हां हम बात कर रहे हैं पाटलिपुत्र संसदीय क्षेत्र के पालीगंज विधानसभा क्षेत्र के घूरना बिगहा गांव की, जहां स्वतंत्रता के 77 वर्ष के बावजूद आजतक उन ग्रामीणों को आधार भूत (बुनियादी मूलभूत) सुविधाओं से एक सड़क, सबसे आवश्यक से दूर रखा गया है। लगभग एक हजार मतदााओं के साथ कुल 2 हजार आबादी वाले इस गांव के भोले भाले ग्रामीणों की अबतक क्या कसूर है। जिन्हे अबतक सड़क सुविधा दूर रखा गया। वैसे तो इस गांव पिछड़े वर्ग में यादव, महादलित वर्ग से रविदास, अति पिछड़े ठाकुर, ताती जैसे आधा दर्जन कई अन्य जाति वर्ग के लोग रहते हैं। केवल 3 सौ मीटर तक छुटी हुई, सड़क को सरकार और प्रशासनिक कुनबा नहीं जोड़ पा रहे है। जी, हां गांव की भौगोलिक तस्वीर यह है यह कि गांव के चारो तरफ मुख्य सड़कों का जाल बिछा है। मात्र लगभग 300 मीटर सड़क बीच में यह अछूत सा बना हुआ, गांव किसी अनाथ बच्चे की तरह छोड़ दिया गया है। पालीगंज अनुमंडल मुख्यालय से केवल 7 किलोमीटर की दूरी रही होगी। इस गांव चारो तरफ से सड़के एनएच 139, पटना-औरंगाबाद मुख्य मार्ग से सटे सियारामपुर गांव को जाने वाली सड़क से घूरना बिगहा गांव को जाने वाली सड़क की दूरी महज ढाई किलोमीटर की है। गांव से मुख्य सड़क तक 20 वर्ष पूर्व तात्कालीन विधायक के कार्यकाल में यह सड़कों का निर्माण शुरू हुआ, लेकिन दुर्भाग्य पूर्ण स्थिति के कारण गांव से आगे की ओर मुख सड़कों तक सड़के तो बनी लेकिन मुख्य सड़क से 300 मीटर की दूरी तक नहीं जुड़ पाई। जिसका मुंह कारण कुछ किसानों के बगल के गांव के ही कुछ किसानों की जमीन पड़ती रही, जिनके अवरोध और विरोध करने के बाद यह सड़क नहीं बन पाई। जिसके कारण आज तक क्या सड़क आधी अधूरी पड़ी हुई है। इस दौरान लगभग कई विधायक और सांसद का कार्यकाल समाप्त हो चुका, लेकिन इस दिशा में कोई ठोस पहल किसी भी जनप्रतिनिधियों (सांसद या विधायक) ने ठोस प्रयास नहीं किया। उनकी इच्छा शक्ति के अभाव में सड़क आज भी आधी अधूरी पड़ी हुई है। इस गांव में कभी कोई बीमारी आपात स्थिति उत्पन्न होती हैतो इलाज के लिए 7 किलोमीटर की दूरी अनुमंडल अस्पताल पालीगंज आने के लिए उन्हें 1000 बार सोचना पड़ता है, क्योंकि सबको जैसे बुनियादी सुविधा नहीं होने की वजह से ग्रामीणों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। गर्मी के दिनों में किसी तरह काम चल जाता है, लेकिन जब बरसात और सर्दियों का मौसम आता है, तो चारों तरफ पानी भर जाता है। जिसके कारण इस गांव का संपर्क कट सा जाता है और ऐसी  स्थिति में जब इस गांव में किसी भी तरह के आकस्मिक विपदा आती है या किसी भी बड़ी बीमारियों से लोग ग्रस्त होते हैं तो उन्हें 1000 बार सोचना पड़ता है। काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। येन केन प्रकारेण खटिया पर लाद कर रोगी को सड़क तक लाते हैं और उसके बाद अस्पताल तक पहुंचाते हैं। देश की आजादी के कितने वर्ष बीत गये, हम एक तरफ विकसित होने का दावा करते हैं, तो दूसरी तरफ यह क्षेत्र आज भी विकास कोसों दूर है। इस गांव के ग्रामीणों का इतना ही दोष है, कि  उन्होंने आवाज नहीं उठाया। दूसरे शब्दों में ग्रामीणों की शालीनता उनकी शालीनता के कारण यहां के जनप्रतिनिधि उनपर ध्यान नहीं देते। एक गीत का बोल ग्रामीणों की व्यथा प्रदर्शित करता है….. सदियां बीत गई, विकास का इंतजार किया……

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By Awadhesh Sharma

न्यूज एन व्यूज फॉर नेशन

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