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आसनसोल लोकसभा सीट, गायक पवन सिंह और बंगाल बिहार की महिलाओं का दर्द

बिहारी प्रवासी मजदूरों का दर्द समेटे सार्वकालिक कवि भिखारी ठाकुर की रचना की प्रासंगिकता

अनमोल कुमार

भोजपुरी के सार्वकालिक कवि भोजपुरी के शेक्सपियर कहे जाने वाले कालजयी भिखारी ठाकुर ने सबसे पहले पूरब की पीड़ा को अपनी मंचीय प्रस्तुति में प्रदर्शित किया। वे उन प्रवासी मजदूरों की विरह और बिरहीन पत्नी की व्यथा वेदना को गीत और नाट्य कला में व्यक्त किया। उनके गीत पियवा गइले कलकतवा काफी लोकप्रिय हुई। जिसकी लोकप्रियता में आज भी कोई कमी नही आई है, हालाकि उसकी प्रस्तुति का स्वरुप अवश्य बदल गया है। बिहार में पेट के जले भिखारी ठाकुर ने लौंडा नाच में काम किया, किंतु पेट ही नहीं परिवार के लिए कलकत्ता मजदूरी करने चले गए। वहां पश्चिम बंगाल के मिदनापुर के मेला में रामलीला देखने के बाद ही भिखारी ठाकुर के मन में गीत गवनई हिलोर मारने लगा। वहां की नाट्य मंडली में उन्होंने अतिरिक्त जॉब शुरु किया। भिखारी ठाकुर ने प्रवासी बिहारी मजदूरों (विशेषतः भोजपुरी भाषी) की पीड़ा को अपनी कला का माध्यम बनाया। भोजपुरी लोकगीतों में बंगाल की महिलाएं पूर्व से ही छाई रही है, यह बात अवश्य है कि उन्हें नायिका के रूप में नहीं बल्कि मजदूरों की पत्नी की बिरह की खलनायिका के रुप में प्रस्तुत किया। इसके कई सामाजिक कारण भी हैं। बिहारी पृष्ठभूमि और मजदूरों की व्यथा समझने वाले भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद के हस्तक्षेप पर उन्हें भारत सरकार ने सम्मानित किया।

भोजपुरी गीत संगीत के लिए पद्मश्री और पद्म विभूषण पाने वाली शारदा सिन्हा ने उनकी बंगाल व्यथा आधारित भोजपुरी गीत…… लेले आईह हो पिया टिकवा बंगाल से……. हो….भोजपुरी गीत संगीत में बंगाल कितनी चर्चा और खासकर बंगाली स्त्रियों की इतनी चर्चा…. क्यों ? इसके पीछे के मर्म को समझने के लिए थोड़ा सा फ्लैशबैक में जाना होगा बिहार के लोग पहले रोजी रोजगार की तलाश में सबसे ज्यादा बंगाल जाते रहे, वहां जुट के मिल में उन्हें काम मिलता रहा। वर्षों तक वहां कमाते, वही रच बस जाते यही कारण रहा कि भोजपुरी लोकगीतों में बंगाल की स्त्रियों को जादूगरनी के तौर पर वर्णित किया गया। बिहार का बंगाल से काफी लगाव रहा, बिहारी लोगों को बंगाल में रोजगार मिला तो बंगाल को समृद्ध करने वाले सस्ते मजदूर मिले। बंगाली महिलाओं को कमाउ पति भी मिले। बिहार के स्कूली सिलेबस में एक पाठ शामिल किया गया। जिसका शीर्षक पंचकार से पम्मकार, इस पाठ में बताया गया कि बंगाल की स्त्रियां काफी सुंदर होती, उनके लंबे बाल, आंखें काफी आकर्षक होती हैं, बंगाल स्त्री प्रधान प्रदेश रहा है। साहित्य, संगीत, नृत्य कला में बंगाल की स्त्रियों की सुंदरता के नक्शे शीर्षक वर्णन की परिपाटी रही है। पूरे देश में सबसे ज्यादा खूबसूरत स्त्रियों के तौर पर बंगाल की महिलाओं को माना गया है। जबकि दूसरी तरफ इसकी तुलना पंजाब से की गई, जो पुरुष प्रधान क्षेत्र है। बिहार के सरकारी स्कूलों के किताब में इसे शामिल किया गया। उस समय बिहार में राजद की सरकार रही। इस दौर में लालू प्रसाद यादव की जीवनी गुदरी के लाल को भी बिहार के बच्चों को पढ़ाया जा रहा था। इन दोनों पर विवाद हुआ और दोनों को स्कूली पाठ्यक्रम से हटा दिया गया।

वर्तमान राजनीतिक परिप्रेक्ष्य

आमूल विषय पर आते हैं भाजपा ने आसनसोल से भोजपुरी गायक पवन सिंह को उम्मीदवार बनाया। टिकट भी दे दिया गया, पवन सिंह समेत भोजपुरी के तमाम गायको ने बंगाल की स्त्रियों पर गाना गया है। अब बंगाल के पॉलिटिक्स में यही गाना विवाद का कारण बना और पवन सिंह को अपना टिकट वापस करना पड़ा। पवन सिंह ने बंगाली स्त्रियों को लेकर कोई गाली नहीं दी है, बल्कि भोजपुरिया ठेठ अंदाज में उन महिलाओं के लिए जो बंगाल से बिहार जाकर बार डांसर का काम करती हैं। आर्केस्ट्रा ग्रुपों में काम करती हैं। उनको इंगित करके गीत गाया है। बंगाल की स्त्रियों को देश में सबसे ज्यादा खूबसूरत माना जाता है या उपमा किसी भोजपुरिया गायक या कलाकार ने नहीं दी है। भोजपुरी लोक संस्कृति में पूरब की ओर कमाने जाने वाले पुरुष वर्षों घर वापस नहीं लौटते रहे। तब के गीत में भी भिखारी ठाकुर ने बंगाली स्त्रियों को जादूगरनी तक की उपमा दे दी। समय और काल बदला तो थोड़ी सी विद्रूपता आई। पवन सिंह का विरोध करने वाले लोगों को इस बात की भी पड़ताल करनी चाहिए कि 50,000 से अधिक बंगाली की लड़कियां बिहार में आकर रोजी रोजगार कर रही हैं। उन पर क्यों नहीं रोक लगाती। छपरा और सिवान जिला के संधि स्थल पर बाजार है, जिसका नाम है जनता बाजार, वहां 10,000 से ज्यादा बंगाल की नर्तकियों ने अपना स्थाई बसेरा बसा लिया है। पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं के नैन नक्श सुंदरता उनकी अदाओं पर गीत लिखे और गए जाते हैं। जिसकी कीमत बिहारी गीतकार और पवन सिंह जैसे गायकों को उठानी पड़ती है। रिंकिया के पापा और लहंगा रिमोट से उठाने वालों से लेकर शुक्रवार से सोमवार तक सटे रहने वालों से कोई सवाल नहीं पूछता। स्त्री चाहे बंगाल की हो या बिहार की सबकी गरिमा और सम्मान बराबर है। अलबत्ता सोच और कार्रवाई एक तरफा नहीं होनी चाहिए। वैसे पवन सिंह अब बिहार के काराकाट लोकसभा क्षेत्र से निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे हैं। लोकतंत्र में हर किसी को चुनाव लड़ने का अधिकार आसनसोल से भाजपा ने अहलूवालिया को मैदान में उतारा है।

कलाकारों, गीतकारों की भावना और मर्म समझने की आवश्यकता : अवधेश कुमार शर्मा

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By Awadhesh Sharma

न्यूज एन व्यूज फॉर नेशन

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