Sat. Apr 20th, 2024

भारत विश्व गुरु अपने दर्शन, सनातन संस्कृति और संस्कारों में विश्वास के कारण था। दुर्भाग्य से हमने अपने ज्ञान-परंपरा पर अविश्वास करना शुरू किया और शंकाओं पर आधारित पाश्चात्य ज्ञान-दर्शन हम पर आच्छादित हो गए। इसके साथ ही बाजारवाद ने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को भारी नुकसान पहुंचाया। उक्त विचार आजादी के अमृत महोत्सव एवं धर्मपाल जन्मशताब्दी वर्ष के उपलक्ष में रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय भोपाल में धर्मपाल: स्वदेशी और स्वराज की अवधारणा विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी कार्यक्रम में मध्यप्रदेश विधानसभा अध्यक्ष एवं इस संगोष्ठी के मुख्य अतिथि गिरीश गौतम ने व्यक्त किए। इसी क्रम में कार्यक्रम के मुख्य वक्ता रामेश्वर मिश्र ‘पंकज ‘ पूर्व निदेशक, धर्मपाल शोध पीठ स्वराज संस्थान, भोपाल ने अपने बीज वक्तव्य में कहा कि यूरोपीय न्यूटोनियन मॉडल प्रोपेगेंडा आधारित है जिसने भारतीय इतिहास को गलत तरीके से पेश किया है। उन्होंने आगे यह भी बताया कि लोगों में गलत धारणा है कि अंग्रेजों ने भारत को गुलाम बनाया जबकि देखा जाए तो यूरोप ने उपनिवेशीकरण की नीति अपनाई। हमने पिछले 75 वर्षों में यूरोप का अनुसरण किया है। आज जरूरत है अपने इतिहास को बिना पूर्वाग्रह के अपने लोगों को केंद्र में रखकर देखे जाने की।

सच को बिना पूर्वाग्रह से स्वीकार करते हुए हम फिर से राजनीतिशास्त्र , समाजशास्त्र और धर्मशास्त्र की पुनर्स्थापना कर सकते हैं। कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए दूर शिक्षा निदेशालय, वर्धा के समाज वैज्ञानिक और चिंतक डॉ अमित राय ने धर्मपाल के वैज्ञानिक सच को उद्घाटित करते हुए कहा की अंग्रेजी शासन में भारत के अभीजन मानस भी इंटेलेक्चुअल शिजोफ्रेनिया से ग्रसित रहे। उन्होंने कहा कि भारत के अभिजन भी इतिहास के पूर्वाग्रहों से मुक्त नहीं थे जबकि धर्मपाल जैसे इतिहासकार ने ईस्ट इंडिया कंपनी के भारत को भारतीय दृष्टिकोण से देखा और शोधन किया।  कार्यक्रम के सह वक्ता डॉ मुकेश कुमार मिश्रा, निदेशक दत्तोपंत पीठ स्वराज संस्थान , भोपाल ने अपने  उद्बोधन में कहा कि धर्मपाल ने यूरोप के मकड़जाल को सत्य के शोधन पर तोड़कर एक भागीरथ प्रयास किया। उन्होंने कहा कि धर्मपाल ने भारत क्या था और क्या है को एक स्केनर की तरह हम तक पहुंचाया है। इसके अलावा उन्होंने स्वदेशी और स्वराज्य पर बात रखते हुए कहा कि स्वजन से संवाद स्थापित द्वारा ही सच्चे अर्थों में हम स्वराज और स्वदेशी को स्थापित कर सकते हैं ।उन्होंने सोशल क्रिएटर्स को समझने की बात अपने उद्बोधन में की।  इस अवसर पर रबीन्द्रनाथ  टैगोर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति संतोष चौबे ने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा प्रकृति और वैज्ञानिक सम्यक रही है। उन्होंने यूरोपीय ज्ञान- परंपरा और भारतीय ज्ञान -परंपरा को रिवर्स तरीके से देखने की बात कही ।उन्होंने भाषा के स्तर पर भी स्वदेशी, स्वराज और विऔपनिवेशीकरण को देखने की बात कहीं। इसी क्रम में उन्होंने आरएनटीयू द्वारा दार्शनिकता और चिंतन को केंद्र में रखकर किए जा रहे सतत कार्यकलापों को सभागार में उपस्थित लोगों से साझा किया। साथ ही कला, साहित्य और संस्कृति का वैश्विक मंच  विश्व रंग के बारे में विस्तृत जानकारी साझा किया। 

इस अवसर पर विश्व रंग के फोल्डर का भी लोकार्पण किया गया। इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में देशभर से आए अन्य विशिष्ट वक्ता के रूप में कुमार मंगलम, सहायक प्राध्यापक, उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय,जगन्नाथ दुबे, सहायक प्राध्यापक, खैर,अलीगढ़, डॉ आशुतोष, सहायक अध्यापक, हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर, डॉ राकेश कुमार मिश्रा, सह आचार्य, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा, अवधेश मिश्र, सह आचार्य, क्राइस्ट चर्च कॉलेज, कानपुर और अरुणेश शुक्ल, सह आचार्य, रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय भोपाल ने अपनी बात मंच से रखी। कार्यक्रम का मंच संचालन वरिष्ठ कला समीक्षक, विनय उपाध्याय द्वारा किया गया। अतिथियों का आभार ज्ञापन मानविकी एवं कला उदार संकाय की अधिष्ठाता डॉ. संगीता जौहरी द्वारा किया गया। इस दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का संयोजन मानविकी एवं उदार कला संकाय के इतिहास विभाग की डॉ. सावित्री सिंह परिहार द्वारा किया गया।

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