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जो लोग राजू को करीब से जानते थे वो उनके जीने के फंडों से भी काफी वाकिफ थे। नकारात्मकता को कभी पास न आने देना भी एक कला है और राजू इस कला में माहिर थे। वो कहते थे, जीवन का सही आनंद लेना है… तो भैया जिंदगी की जो भी नकारात्मकता है, उसे सकारात्मक सोच में बदल दो, नहीं तो जी नहीं पाओगे। कभी आपने महसूस किया है कि आपके आंसू निकल रहे हों और आप साथ में हंस रहे हों। कठिन होता है ऐसा करना, लेकिन जो व्यक्ति जीवन में आपको ऐसा करना सिखा जाए समझ लेना वो ही जीने का असली सलीका सिखाकर गया। इन्हीं में एक नाम था कानपुर की तंग गलियों से निकले सत्यप्रकाश श्रीवास्तव का। दरअसल, बहुत ही कम लोगों को यह पता है कि राजू श्रीवास्तव का असली नाम सत्यप्रकाश श्रीवास्तव था। आज राजू श्रीवास्तव की नहीं बल्कि उस सत्यप्रकाश की मौत हुई है, जिसके शरीर में राजू श्रीवास्तव रहते थे। आज वो सांस ले रहे होते तो शायद इस बात पर अजीब सा मुंह बनाकर कहते …अच्छा..! जो लोग राजू को करीब से जानते थे वो उनके जीने के फंडों से भी काफी वाकिफ थे। नकारात्मकता को कभी पास न आने देना भी एक कला है और राजू इस कला में माहिर थे। वो कहते थे, जीवन का सही आनंद लेना है… तो भैया जिंदगी की जो भी नकारात्मकता है, उसे सकारात्मक सोच में बदल दो, नहीं तो जी नहीं पाओगे। इसके साथ ही राजू का हमेशा एक और फंडा रहा कि अपनी कमजोरियों और मजबूरियों को छिपाने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि इन्हें अपनी जीवन शैली का हिस्सा बनाइए, आप देखेंगे कि आपकी यहीं बातें सकारात्मक रूप ले रही हैं। एक बार राजू ने कहा था कि लोग आपको चाहे जितना दुत्कारें, फटकारें और गालियां दें। आप धैर्य रखिए और एक हल्की मुस्कान चेहरे पर रखिए। ये आपकी ताकत में अजीब सा इजाफा कर देंगी और आपका आत्मविश्वास और बढ़ जाएगा। राजू हमेशा कहते थे कि अपने काम से प्यार कीजिए क्योंकि यही आपको आपकी पहचान देगा। इसके साथ ही इस बात का ध्यान रखें कि आप चाहें जितने बड़े क्यों न हो जाएं अपना परिवार, अपनी जमीन, अपने मोहल्ले, अपने शहर और अपने लोगों से जुड़ाव किसी भी हाल में खत्म नहीं करना चाहिए। क्योंकि यही वो बातें हैं जो संघर्ष के दिनों में आपको मनोबल प्रदान करती हैं। चलिए अब थोड़ा उनके बारे में जान लेते हैं। जैसा मैंने आपको बताया कि राजू श्रीवास्तव का असली नाम सत्यप्रकाश श्रीवास्तव है। कानपुर के बाबूपुरवा में रहने वाले रमेश चंद्र श्रीवास्तव (बलई काका) के घर राजू ने 25 दिसंबर 1963 में जन्म लिया था। एक बार अमर उजाला से बातचीत के दौरान राजू श्रीवास्तव ने बताया था कि 1981 में उनके बड़े भाई की शादी फतेहपुर में तय हुई थी। कानपुर से बरात लेकर गए। वहीं शिखा को पहली बार देखा और पहली ही नजर प्यार हो गया। सोचा अब इसी से ही शादी करुंगा। शिखा के बारे में छानबीन की तो पता चला ये भाभी के चाचा की बेटी हैं। इसके बाद काफी प्रयासों के बाद राजू आखिर उन्हें अपनी पत्नी बनाने में कामयाब हो गए।अब बताइए जो आदमी सकारात्मक ऊर्जा से इतना भरा हो, जो जीवन को इस नजरिए से देखता हो, क्या वो कभी मर सकता है। इसलिए राजू श्रीवास्तव के लिए इतना ही कहना उचित होगा कि ऐसे लोग कभी नहीं मरते। राजू के लिए रहमान फारिस की दो लाइनें ही कहूंगा।
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