परमात्मा के साथ अपना सम्बन्ध मानने से ही उसके प्रति हमारे मन में प्रेम ही तो मन को मग्न करने एवं जोडने का साधन है। अतः हरेक योगाभ्यासी को चाहिए कि वह इस सत्यता का मनन करते हुए इस भाव में लवलीन हो कि परमात्मा हमारा परमप्रिय परमापिता है, वह हमारी ममता भरी माँ है। और वही हमारा परममित्र भी है तथा अविनाशी शिक्षक और सद्गुरु भी। परमात्मा के साथ माता पिता का सम्बन्ध होने से ही तो हमें उनकी ईश्वरीय सम्पत्ति पवित्रता और शान्ति आदि की प्राप्ति होगी। उसके साथ शिक्षक विद्यार्थी का सम्बन्ध जोडने से ही तो हमें उससे ईश्वरीय विद्या का लाभ होगा और मार्गदर्शन मिलेगा तथा गति और सद्गति प्राप्त होगी।