Wed. Mar 12th, 2025

हमारे शब्दो में एक प्रकार की ऊर्जा समाहित होती हैं जो सामने वाले के पास जाती है। कोई भी बात मुख से बोलने से पहले मन में संकल्प रुप में उत्पन्न होती हैं। शब्दो में जो ऊर्जा होती हैं वह सबसे पहले स्वयं को अनुभव होती है और फिर सामने वाला को उस ऊर्जा को ग्रहण करता है। लेकिन ऐसा हर बार नही होता कि जिस भाव और जिस अनुभव से हम कुछ बोले सामने वाला हमारे शब्दो को उसी भाव से ग्रहण करे। कई बार लोग अपनी इच्छा अनुभव और सोच के अनुसार हमारी बात को स्वीकार करते है। इसलिए हमारे लिए यह आवश्यक हैं कि एक तो हम अपने शब्दो का चयन कुशलतापूर्वक करे और दूसरा अपनी बात के शब्दो की ऊर्जा को बढ़ाए। इसके लिए सर्वप्रथम परमात्मा हमें सिखाते है। कि कभी भी मुख से नकारात्मक या व्यर्थ बोल न निकाले कभी भी किसी को चुभने वाली बात या व्यंग्यपूर्ण बात न कहे। कभी भी किसी की कमजोर स्थिति का वर्णन दीर्घ रुप में न करके केवल सुधारने के लिए सहयोग के शब्दों का उपयोग करे। किसी भी व्यक्ति को ऐसे शब्द या ऐसी बात ना कहे जो हमे स्वयं को पसंद ना आए।

 

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