Sat. Mar 15th, 2025

भारत में बदलता राजनीतिक परिदृश्य कौन सा गुल खिलायेगा यह आने वाला समय बताएगा। हालाकि भारत में अब काफी बदलाव दिखने को मिल रहा है। पहले अर्थ व्यवस्था में बदलाव दिख, अब पुनः कृषि के क्षेत्र में बदलाव की उम्मीद है, देखना है कि नरेंद्र मोदी की सरकार भारत के युवाओ के लिए भविष्य के दरवाजे खोलती है अथवा सिर्फ़ घोषणाओं की झड़ी लगाती रहेगी अथवा युवाओं के भविष्य की फिक्र छोड़कर सिर्फ सरकारी कर्मियों, उद्योगपतियों और राजनेताओं की भविष्य संवारने का कार्य करेगी। फिलहाल हिंदुत्व के सहारे इस लोकसभा चुनाव की नैया भी पार लगेगी।  आइये देखते हैं भारतीय लोकतंत्र के चुनाव में कैसे किसे कितने वोट मिले। स्वतंत्र भारत में लोकसभा के लिए 25 अक्टूबर 1951 और 21 फरवरी 1952 के बीच पहली बार आम चुनाव सम्पन्न हुए। भारतीय मतदाताओं ने संसद के नीचले सदन लोकसभा के 489 सदस्यों को चुना। भारत के अधिकांश राज्य के विधानसभा के चुनाव भी एक साथ कराये गए। उपर्युक्त चुनाव 26 नवंबर 1949 को अंगीकृत संविधान के प्रावधानों के अंतर्गत कराये गए। स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत संविधान स्वीकृति के समय संविधान सभा अंतरिम संसद के रूप में कार्य करती रही, जबकि एक अंतरिम कैबिनेट का नेतृत्व पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने किया। 1949 में एक चुनाव आयोग बनाया गया और मार्च 1950 में सुकुमार सेन को पहले मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त किये गए। लोकसभा की 489 सीट 25 राज्यों के 401 निर्वाचन क्षेत्र में आवंटित की गईं। 499 सीट में कांग्रेस ने 364 सीट जीता। 314 निर्वाचन क्षेत्र में फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट प्रणाली का उपयोग करके एक सदस्य का चुनाव किया जाता रहा। 86 निर्वाचन क्षेत्रों में दो सदस्य चुने गए, एक सामान्य श्रेणी से और एक अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से, तीन निर्वाचित प्रतिनिधियों वाला एक निर्वाचन क्षेत्र रहा, बहु-सीट निर्वाचन क्षेत्रों को समाज के पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षित सीटों के रूप में बनाया गया और 1960 के दशक में समाप्त कर दिया गया। इस समय के संविधान में भारत के राष्ट्रपति के नामित दो एंग्लो-इंडियन सदस्यों का प्रावधान भी रहा था। लोकसभा की 489 सीटों के लिए 1951 की जनगणना के अनुसार 361,088,090 की आबादी में (जम्मू और कश्मीर को छोड़कर) कुल 173,212,343 मतदाता पंजीकृत रहे, जबकि  कुल 1,949 उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा। भारतीय लोकतंत्र का दूसरा आम चुनाव के 1957 में किया गया, 24 फरवरी 1957 से 14 मार्च 1957  आम चुनाव कराया गया। उस समय  494 सीटों में चुनाव कराया गया। जिसमे कांग्रेस पार्टी ने 371 सीट जीता, भारतीय लोकतंत्र के चुनावी इतिहास में पहली बार मतदान के क्रम में बूथ कब्ज़ा करने की पहली घटना बिहार के 1957 के आम चुनावों में देखा गया, जब बेगूसराय के रचियाही में मटिहानी विधानसभा सीट में एक मामला सामने आया।

तीसरी लोकसभा के सदस्यों का चुनाव करने के लिए भारत में 19 से 25 फरवरी 1962 के बीच आम चुनाव हुए। पिछले दो चुनावों के विपरीत, प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में एक सदस्य चुना गया। जवाहरलाल नेहरू ने अपने तीसरे और अंतिम चुनाव अभियान में एक और शानदार जीत प्राप्त किये। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को 44.7% वोट मिले और उसने 494 निर्वाचित सीटों में से 361 सीटें जीतीं। यह पिछले दो चुनावों की तुलना में थोड़ा ही कम रहा और लोकसभा में अभी भी 70% से अधिक सीटें उनके पास रही। पण्डित नेहरू की मृत्यु उपरांत 1965 में पाकिस्तान से लालबहादुर शास्त्री के प्रधानमंत्रीत्व युद्ध हुआ। ताशकंद समझौता उपरांत उनकी मृत्यु हुई और 1966 में इंदिरा गाँधी पहली बार प्रधानमंत्री बनी। पाकिस्तान युद्ध और लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद 1967 का चौथा आम चुनाव भारतीय राजनीति के लिए काफी अधिक महत्वपूर्ण रहा, पंडित जवाहर लाल नेहरू की अनुपस्थिति में चुनाव संपन्न हुई। चौथी लोकसभा के 523 सदस्यों में से 520 सदस्यों को चुनने के लिए भारत में 17 से 21 फरवरी 1967 के बीच आम चुनाव कराये गए। चुनाव बाद कांग्रेस लगातार चौथी बार सरकार बनाने में तो सफल रही, लेकिन उसका प्रदर्शन पिछले चुनावों के मुकाबले काफी फीका रहा। आम चुनाव के साथ होने वाले राज्य विधानसभा चुनावों में तो कांग्रेस को और तगड़ा झटका लगा और 6 राज्य उससे छिन गए। 1967 के चुनाव से इंदिरा युग की प्रादुर्भाव हुआ। कांग्रेस पार्टी ने संसद में 352 सीट जीता, इंदिरा गाँधी दूसरी बार प्रधानमंत्री बनी। इंदिरा गांधी दिवंगत पति फिरोज गाँधी [खान] की सीट रायबरेली से पहली बार चुनाव लड़ीं और विजयी हुई। 1967 के चुनाव बाद इन्दिरा गाँधी दूसरी बार भारत की प्रधानमंत्री बनीं। उस समय कांग्रेस पार्टी समाजवादी बनी जिसकी कमान इंदिरा गाँधी ने संभाली।

भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश, ऐतिहासिक रूप से कांग्रेस (आर) का गढ़ बना। कांग्रेस (समाजवादी) इंदिरा गुट और  कांग्रेस (रुढ़ीवादी) एंटी इंदिरा गुट(मोरारजी देसाई) बना, सत्ता विरुद्ध पहली बार संरचनात्मक कारणों से एक मजबूत और एकजुट विपक्ष का उदय हुआ, कांग्रेस के भीतर फूट और थकावट, एक प्रभावी विपक्ष और जनसंचार माध्यमों को नियंत्रित करने में गांधी की विफलता शामिल दिखी, जो आपातकाल के दौरान सेंसरशिप के अधीन भी रहा। संरचनात्मक कारकों ने मतदाताओं को अपनी शिकायतें व्यक्त करने की अनुमति दी, विशेष रूप से आपातकाल और इसकी सत्तावादी और दमनकारी नीतियों के प्रति उनकी नाराजगी परिलक्षित हुई। आपातकाल के क्रम में आमजन की एक शिकायत ग्रामीण क्षेत्रों में ‘नसबंदी’ (नसबंदी) अभियान की रही, मध्यम वर्ग ने पूरे देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने पर भी जोर दिया। इंदिरा गाँधी समर्थक पुराने जमीनी नेता 1969 में कांग्रेस रेक्विजिनिस्ट गुट में शामिल हो गए। चुनाव आयोग ने पिछली  31 सांसद ने इंदिरा गांधी  कर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (संगठन) बनाया। वर्ष 1969 के नवम्बर में इंदिरा गाँधी की अल्पमत की सरकार बनी, जो मार्च 1971 में भंग हुई, इंदिरा गाँधी की सरकार स्वतंत्र भारत की पहली अल्पमत की सरकार रही।  इंदिरा गाँधी की 523 में मात्र 221 सीट रही, उन्होंने डीएमके की 26, सीपीआई और सी.पी.एम. की 15 सीट मिलाकर 289 के साथ बहुमत सिद्ध कर लिया। अलबत्ता राष्ट्रपति वेंकट वराह गिरी ने 27 दिसम्बर 1970 को लोकसभा भंग करने की सिफारिश कर दिया। पाँचवी लोकसभा आम चुनाव के लिए 1971 में पहली बार लोकसभा में महागठबंधन बना और इंदिरा गाँधी की सरकार को गिराने की कवायद प्रारम्भ हुई। पांचवीं लोकसभा के सदस्यों का चुनाव करने के लिए भारत में 1 से 10 मार्च 1971 के बीच आम चुनाव कराया गया।  27 भारतीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का प्रतिनिधित्व 518 निर्वाचन क्षेत्र ने किया, जिनमें से प्रत्येक में एक सीट रही। इंदिरा गांधी के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आर) ने एक अभियान संचालित किया, जो गरीबी को कम करने पर केंद्रित रहा और पार्टी में विभाजन पर काबू पाकर और पिछले चुनाव में खोई हुई कई सीटों को पुनः प्राप्त कर एक शानदार विजय प्राप्त किया।  परिणाम स्वरुप ग्रैंड एलायंस पराजित हुआ और इंदिरा गुट विजयी हुआ। नवम्बर 1971 में पाकिस्तान से भारत का युद्ध हुआ, इंदिरा गाँधी की कूटनीतिक विजय और पाकिस्तान का समर्पण के साथ बांग्ला देश का उदय हुआ। उसके बाद फिर से इंदिरा गाँधी ने सत्ता संभाला लेकिन अंततोगत्वा 1974 में आपातकाल की घोषणा कर दिया, जिसे भारतीय राजनीति का काला अध्याय कहा जाता है। आपातकाल उपरांत सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी को पराजित करने के लिए सभी विपक्षी पार्टियों का बेमेल गठबंधन हुआ और 1977 के छठे आम चुनाव में इंदिरा कांग्रेस की बुरी तरह पराजय हुई। इंदिरा गाँधी को रायबरेली से जमानत तक जप्त हो गई। चुनाव आपातकालीन अवधि के दौरान हुए, जो अंतिम परिणाम घोषित होने से कुछ समय पहले 21 मार्च 1977 को समाप्त हो गए। चुनावों में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आर) की भारी हार हुई, निवर्तमान प्रधान मंत्री और कांग्रेस (आर) पार्टी की नेता इंदिरा गांधी रायबरेली में अपनी सीट हार गईं, जबकि उनके बेटे संजय अमेठी में अपनी सीट हार गये। विपक्ष सत्ता को संभाल नहीं सका और 1980 में 7वीं लोकसभा का 3 और 6 जनवरी 1980 को भारत में आम चुनाव कराया गया। इस दौरान इंदिरा कांग्रेस ने पूर्ण बहुमत से सत्ता संभाला।  कांग्रेस (आई) ने 353 सीटें जीतीं और जनता पार्टी ने सिर्फ 31 सीटें जीतीं, चरण सिंह की जनता पार्टी (सेक्युलर) ने 41 सीटें जीतीं। भारत में 1984 में इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद 9 वीं लोकसभा का चुनाव कराया गया जिसमे सहानुभूति लहर के कारण कांग्रेस को 404 सीट प्राप्त हुए। 9 वीं लोकसभा के लिए भारत में 22 और 26 नवंबर 1989 को आम चुनाव कराये गए, जिसमे कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी रहते हुए सत्ता से दूर हो गयी। राजीव गांधी के प्रधानमंत्रीत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (इंदिरा) सरकार ने अपना जनादेश डुबो दिया। दूसरी सबसे बड़ी पार्टी जनता दल (राष्ट्रीय मोर्चा का भी नेतृत्व) नेता वीपी सिंह को भारत के राष्ट्रपति ने सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया। सरकार का गठन भारतीय जनता पार्टी और सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाली कम्युनिस्ट पार्टियों के बाहरी समर्थन से किया गया। वीपी सिंह ने 2 दिसंबर 1989 को भारत के सातवें प्रधान मंत्री के रूप में शपथ लिया। 10वीं लोकसभा आम चुनाव भारत में 20 मई, 12 जून और 15 जून 1991 को कराये गए, हालांकि पंजाब में 19 फरवरी 1992 तक इसमें देरी हुई। लोकसभा में कोई भी पार्टी बहुमत नहीं जुटा सकी, जिसके परिणामस्वरूप भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (इंदिरा) ने अन्य दलों के समर्थन से नए प्रधान मंत्री पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व में अल्पमत सरकार बनाई। सरकार 28 जुलाई 1993 को विवादास्पद परिस्थितियों में अविश्वास मत से बच गई। जनता दल और झारखंड मुक्ति मोर्चा से दलबदल की योजना बनाकर। 11 वीं लोकसभा आम चुनाव भारत में 1996 में कराया गया। परिणाम के चुनाव एक त्रिशंकु संसद के साथ न तो शीर्ष दो प्रमुख पूर्ण जनादेश मिला और न किसी अन्य को ऐसे में भारतीय जनता पार्टी ने अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व में कुछ समय की सरकार बनाई। संयुक्त मोर्चा से मिलकर, एक गैर कांग्रेस, गैर भाजपा बनाया और सुरक्षित समर्थन से 332 सदस्यों की 545 सीटों में लोकसभा में जिसके परिणामस्वरूप, एच डी देवेगौड़ा के जनता दल होने के नाते 11 वीं भारत के प्रधानमंत्री बने । 11 वीं लोकसभा में दो वर्ष में तीन प्रधानमंत्री बने, इसलिए देश के लिए चुनाव, 12 वीं लोकसभा  का चुनाव करने के लिए भारत में 16, 22 और 28 फरवरी 1998 को मतदान कराये गए। नवंबर 1997 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) ने अपना समर्थन वापस लेने के बाद इंद्र कुमार गुजराल के नेतृत्व वाली सरकार गिरने के बाद चुनाव तय समय से तीन साल पहले कराने पड़े। परिणाम एक और त्रिशंकु संसद बनी, जिसमें कोई भी पार्टी या गठबंधन बहुमत जुटाने में सक्षम नहीं रहा, हालाकि भारतीय जनता पार्टी के अटल बिहारी वाजपेयी ने तेलुगु देशम पार्टी के समर्थन से राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के नेतृत्व में गठबंधन सरकार बनाने में सक्षम हुए, उन्होंने 543 में से 272 सांसदों के समर्थन के साथ प्रधान मंत्री के रूप में शपथ ली, उनकी सरकार 17 अप्रैल 1999 को गिर गई।

भारत में कारगिल युद्ध के कुछ महीनों बाद 5 सितंबर और 3 अक्टूबर 1999 के बीच 13 वां आम चुनाव कराये गए परिणाम 6 अक्टूबर 1999 को घोषित किए गए। चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को लोकसभा में बहुमत प्राप्त हुआ। 1984 के बाद यह पहली बार किसी पार्टी या गठबंधन ने पूर्ण बहुमत प्राप्त किया किया और 1977 के चुनावों के बाद यह दूसरा अवसर रहा कि जब गैर-कांग्रेसी गठबंधन को बहुमत मिला। भारत का यह लगातार तीसरा चुनाव रहा, जिसमें कुल मिलाकर सबसे अधिक मत प्राप्त करने वाली पार्टी ने सबसे अधिक सीटें नहीं जीतीं। चुनाव ने अटल बिहारी वाजपेयी पूरे पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा करने वाले पहले गैर-कांग्रेसी प्रधान मंत्री होने का रिकॉर्ड बनाया। निर्णायक परिणाम ने राजनीतिक अस्थिरता को समाप्त कर दिया जो 1996 के चुनावों के बाद देखी गई। जिसके परिणामस्वरूप त्रिशंकु संसद बनी, हालाकि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने वोट शेयर बढ़ाने में सक्षम रही, अलबत्ता इसकी 114 सीटों की संख्या को 2014 के आम चुनावों तक प्राप्त सीटों की संख्या के मामले में आम चुनाव में इसका सबसे खराब प्रदर्शन माना जाता है। 14वीं लोकसभा के 543 सदस्यों को चुनने के लिए 670 मिलियन से अधिक मतदाताओं ने मतदान किया। भारत में 20 अप्रैल और 10 मई 2004 के बीच चार चरणों में आम चुनाव संपन्न हुए। पूरी तरह से इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों से कराए गए चुनाव,13 मई को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की प्रमुख पार्टी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने हार मान ली। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस,जिसने आज़ादी से लेकर 1996 तक पूरे पांच वर्षों तक भारत पर शासन किया, रिकॉर्ड आठ वर्षों के कार्यकाल के बाद सत्ता में लौट आई। यह अपने सहयोगियों की मदद से 543 में से 335 से अधिक सदस्यों का आरामदायक बहुमत प्राप्त किया। 15 वीं लोकसभा चुनाव के लिए भारत में 16 अप्रैल 2009 और 13 मई 2009 के बीच पांच चरणों में आम चुनाव हुए । 716 मिलियन मतदाताओं के साथ, यह 2014 के आम चुनाव से आगे निकलने तक दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक चुनाव रहा। 335 सदस्यों में कांग्रेस के नेतृत्व वाला संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन, चुनाव के बाद गठित सत्तारूढ़ गठबंधन, बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी), समाजवादी पार्टी (एसपी), केरल कांग्रेस (केसी) और वाम मोर्चा का बाहरी समर्थन रहा।  भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) ने बड़े मतदाताओं को संभालने के लिए आम तौर पर कई चरणों में आयोजित किए जाते रहे हैं। 16 वीं लोकसभा के लिए आम चुनाव में  नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी, सर्वाधिक सांसद के साथ नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद का शपथग्रहण किया। 5 वर्ष के कार्यकाल पूर्ण करने के बाद 17 वीं लोकसभा का आम चुनाव 2019 में संपन्न हुआ। जिसमें पुनः नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में प्रचण्ड बहुमत प्राप्त हुआ। अब 18 वीं लोकसभा का चुनाव हो रहा है, जिसमें सम्पूर्ण विपक्ष एकजुट है, चुनावी हालात भारतीय राजनीति के 1971 वाले चुनाव से परिलक्षित हैं, अलबत्ता राष्ट्रीय स्थिति वैसी नहीं हैं। अब देखना है कि राष्ट्रीय राजनीतिक व्योम पर गठबंधन का केसरिया पुनः लहरायेगा अथवा विपक्ष गठबंधन अपने मंसूबो में कहाँ तक कितना सफल होगा। भारतीय राजनीति के केंद्र में बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र केंद्रीय सत्ता के केंद्र में रहते आये है। कहा जाता है कि जिस ओर जवानी चलती है उस ओर जमाना चलता है। उसी प्रकार भारत की राजनीति का उत्तरी पट्टी जिधर मुड़ता है उसकी सरकार बनती है। बहरहाल प्रत्येक क्षेत्र का अपना महत्व है, उत्तर पट्टी हो या भारत का कोई कोना भारत सरकार के लिए सबका महत्व एक समान है। भारत के प्रधानमंत्री जितना चुनावी दौरा करते हैं शायद ही किसी देश का प्रधानमंत्री उतना चुनावी दौरा करते हैं। अलबत्ता वर्तमान परिवेश में जितनी राजनीतिक कटुता और विद्वेष की भावना में वृद्धि हुई है वह निःसंदेह लोकतंत्र के लिए उचित नहीं है। भारतीय लोकतंत्र में एक स्वच्छ राजनीतिक परंपरा रही है, जिसका निर्वहन संभवतः अब एनडीए अवश्य

करेगा। भारत में लोकसभा चुनाव दुनिया का सबसे अधिक मतदाताओं की सहभागिता वाला चुनावी रिकॉर्ड बनेगा। 2.63 करोड़ नये मतदाता का रजिस्ट्रेशन कराया गया है।  उनमें से 1.41 करोड़ महिला जबकि सिर्फ 1.22 करोड़ पुरुष मतदाता की संख्या है। आयोग के आंकड़ों के अनुसार 18 से 29 वर्ष आयु वर्ग में दो करोड़ नए मतदाताओं का निबंधन किया गया है।भारत की कुल मतदाताओं का ग्राफ 96.88 करोड़ तक पहुंचा है, भारत की कुल जनसँख्या का 66.76 प्रतिशत  युवा है।

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By Awadhesh Sharma

न्यूज एन व्यूज फॉर नेशन

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