निरहंकारी आत्म कभी भी किसी बात पर आहत नही होती है। निंदा स्तुति में समभाव निरहंकारिता का परिणाम है। निरहंकारिता साधारण व्यक्ति का भी महान बना देती है। इसके आने पर जीवन में दिखावे जैसा कुछ रह नही जाता व्यक्तित्व श्रेष्ठ बन जाता है। निरहकारिता से युक्त व्यवहार परमार्थ को भी सिद्ध करता है। निरहंकारी व्यक्ति एक लचीले फलदार वृक्ष की तरह से अनेक प्रकार की प्राप्ति सदैव दूसरो को झुककर कराता है।
इससे समाज में उसकी मान्यता बढ़ती है। निरहंकारिता से सरल स्वभाव और निस्वार्थ भावना जागृत होती है। निराकारी अवस्था तक पहुचा सकती है। यह कर्मातीत अवस्था बनाने का सबसे सहज साधन है। और कर्मयोगी बनकर बच्चो के साथ मिलकर छोटे से छोटी सेवा भी किया कार्य करते है। जैसे अनाज साफ करना सब्जी काटना आदि ईश्वरीय जीवन की विशेषता ही है।