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कृषि अनुसंधान परिसर, पटना में राष्ट्रीय कार्यशाला और विदेशी सहायता प्राप्त परियोजनाओं की समीक्षा बैठक का होगा आयोजन
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पटना: देश के अधिकांश धान-परती क्षेत्र (लगभग 80%) पूर्वी भारत में पाए जाते हैं। उन क्षेत्रों में रबी फसल उत्पादन के दौरान कई समस्याएँ उत्पन्न होती हैं, जिनमें प्रमुख समस्या भूमि में नमी की कमी और अपर्याप्त सिंचाई व्यवस्था है, जब खेतों में पानी की कमी होती है, तो फसलों की वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसके अतिरिक्त दलहन और तिलहन जैसी फसलों के लिए उपयुक्त और कम अवधि वाली किस्मों की कमी भी एक बड़ी चुनौती है। जिसके कारण रबी फसल का उत्पादन प्रभावित होता है। इसी संदर्भ में धान-परती क्षेत्रों को हरा-भरा बनाने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना 3-4 जनवरी 2025 को दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन करेगा। इसके साथ ही, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर), नई दिल्ली के प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन (एनआरएम) प्रभाग के तहत विदेशी सहायता प्राप्त परियोजनाओं की समीक्षा बैठक का भी आयोजन संस्थान में दिनांक 4 जनवरी 2025 को किया जाएगा, जिसमें कृषि अनुसंधान क्षेत्र के विशेषज्ञ भाग लेंगे। संस्थान के निदेशक डॉ. अनुप दास ने कहा कि इन कार्यक्रमों का उद्देश्य हितधारकों के लिए विचार साझा करने, सहयोग को बढ़ावा देने और धान-परती क्षेत्रों के समग्र विकास पर ध्यान देने के साथ टिकाऊ कृषि के लिए रणनीति विकसित करने के लिए एक मंच तैयार करना है। उन्होंने बताया कि समीक्षा बैठक में एनआरएम प्रभाग अंतर्गत विदेशी सहायता प्राप्त परियोजनाओं की प्रगति एवं प्रभाव का मूल्यांकन किया जाएगा, जिससे भविष्य की कार्य योजना विकसित करने में सहायता मिलेगी।
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By Awadhesh Sharma

न्यूज एन व्यूज फॉर नेशन

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