Sun. Sep 14th, 2025

हमारा आंतरिक चैतन्य आत्मस्वरुप भी अपने असली मूल स्वरुप में सत्य है, शुद्ध है। हमारा शुद्ध अंतः करण भी हमे आवा देता हैं और शुद्ध सत्य कर्म करने के लिए प्रेरित करता हैं, असत्य न करने के लिये कहता है। हम अपने अंतः करण की आवाज को सुने और उस अनुसार करे। लेकिन अनेक जन्मो से प्रकृति समय और संसार के संसर्ग में आते आते हम मानव अनेक प्रकार की अज्ञानता मिथ्या ज्ञान और विकृतियो के प्रभाव में पतित भ्रष्ट बन गए है। मन बुद्धि का कचरा साफ करने के लिये हमे ही सफाईकर्मी बनना चाहिए। किसी धर्मगुरु संत या धर्मोपदेशक पर आधारित नही रहना चाहिए। जीवन का दृष्टिकोण बदलने का अनुबंध दूसरे को नही देना चाहिए जीवन का परीक्षा पत्र खुद ही निकालना चाहिए।

 

 

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