मन जो तू चाहे सुखविधान,
तो सुन ये बातें खोल कान,
सब छोड़ भोग ऐव्श्रर्य मान,
भज रामकृष्ण करुणानिधान।।
दो दिन की है सारी माया,
मानो सुखमय झूठी छाया,
तू शीघ्र विमुख हो जा इससे,
विषरुप वासना विषय जान।।
जग में न कहीं कुछ भी तेरा ना,
अब छोड़ अहं मम का घेरा,
सेवा में अर्पित हो जीवन,
सबको निज आत्मस्वरुप मान।।
अपना ले सुखकर मार्ग श्रेय,
नित स्मरण रहे निज परम ध्येय,
चिन्तन कर प्रभुलीला विद्रेह
सत्संगति है अमृत समान।।