साहस खतरों व बाधाओं के तरफ से अंधा होता है। और उनको देखते हुए भी नही देखता है। साहसी अपने क्षमताओं को आगें रखता है। जबकि डरपोक अपने कमजोरियों को साहस तभी तक एक गुण है।
जब तक वह बुद्धिमानी द्वारा संचालित होता है। यदि मनुष्य अपनें संस्कारो के वस में होकर दुस्साहसी बनता है। तो अनेको को दुख पहुचाने के निमित बनता है। मनुष्य साहसी तो हो परन्तु दुस्साहसी नही। दुस्साहस उतना ही बड़ा दोष है। जितना अति भयभीत होना।