किसी किसी को अक्सर कहते सुना है। कि मेरा तो भाग्य में ही खराब है, मुझे तो कोई प्यार नही करता लोग मेरे हर बात को गलत कहते है। सारे दुख मेरे ही भाग्य में लिखा हुआ है। आदि आदि वे बाते करते है। मनुष्य सिर्फ कर्मो के गुह्ा गति को ना समझने के कारण कहता है। कई बार समझ भी लेता है। लेकिन धारणा करके स्वरुप नहीं बनते है। अपने दुखों और परेशानियों का जिम्मेदार औरो को ठहराकर अलबेले पन सुंदर होकर जीना पसन्द करते है। देखा जाये तो दुख को सही रुप में पहचानना ही सुख है।
जो मनुष्य आत्मायें दुख में भी सुख ढूँढ लेता है। वे ही परिस्थितियों से पार कर सकता है। कर्मो का उलझन सुलझाने के लिए सुख का चिन्तन कर दूसरों को सुख देकर सुख के स्थिति निर्माण करे दुख देने का विचार ना करे। हमारा मन को खेत के समान बहुत बड़ा रखना चाहिएँ। और हमारा भाव से हम पैसा या धन कमाते है।