कल्प कहानी हम बच्चो की 84 के चक्र वाली है। गुणो सें सजकर हमनें भी नयी दुनिया बनाने की ठानी है। सब तरफ भरतपूरता थी खुशियों की भरमार सब रहते थें स्नेह सें शीलयुक्त उनका व्यवहार आत्मा ज्योत जगी थी सबकी देवताई थें संस्कार देव देवियां सब जन मिल कर करते थें महारास सुख सम्पन्नता इतनी थी कि मन में ना कोई आसा। फिर रावण का हुआ आधिपत्य विकार हुए प्रवेष आत्मशक्ति पर हुआ प्रहार तो आने लगा आवेष गुम हो गयी रौशनी खोने लगी शुभ रागिनी।
हारने लगी अब चेतना और करने लगी थी याचना।। सुन दुखियों की पुकार को महाज्योति का हुआ आगमन अगम निगम का भेद खुला और ध्वनि गूंजी शिवोहम् दिया प्रकाश फिर ऐसा देहभाव का कराया त्याग स्वतन्त्र हो गयी आत्मा बचा न द्वेष अनुराग पंख दे दिये ऐसे कि उडती रहती चेतना मन हर्षित रहता है मिट गयी सारी वेदना।।