एक समय की बात है। कबीर जी को बुरे आदमी की आवश्यकता पड गए तो उन्होने सारा जगह ढूंढा ने पर कोई बुरा नही मिला। तो अपनी कुटिया में आकर बैठ गए और कहने लगे बुरा जो ढूंढने मै चला बुरा न मिले कोय जो दिल खोजो आपना मुझ सा बुरा न कोय लेकिन आज इसके उलट हो गया है। पहले हर व्यक्ति स्वयं को बुरा समझता था और औरो को भला देखता था आज का व्यक्ति स्वयं को भला समझता है। और दूसरो में बुराई ही नजर आती है। इसी कारण इंसान की आत्मा इतनी काली हो गई है। कि उस पर प्रभुप्रेम का सत्य का रंग चढ़ नही सकता। आज का इंसान दूसरो का हक छीन कर दूसरो को दुख देकर तथा अपने स्वार्थ के लिए दूसरो का जीवन छीनकर सुख महसूस करता है।