शांति का अर्थ हैं स्वयं की गलतियो दोषों की महसूसता। ऐसा व्यक्ति हर बात में अन्य किसी को दोषी न ठहराकर स्व्यं का दोषी महसूस करेगा जिससे उसका मन शंात रहने लगेगा। शांत मन में शक्तियो का प्रवेश प्रारंभ हो जाता है। आत्मा सर्व शक्तियो से सम्मन्न अनुभव करने लगती है। ऐसी शक्तिशाली आत्मा ही औरों से प्रेम करने लगती है। ग्लानि वाले भी गले लगाती है। गलतियो का क्षमा करती है। किसी के दोषो को अपने चित्त पर नही रखती है। सभी के प्रति समान दृष्टिकोण शुभ भावना कल्याण की भावना हो जाती हैं जब सभी से प्रेमभाव रहने लगता हैं तब जीवन में सदा खुशी रहने लगती है। ऐसी खुशी में मगन आनंद में लीन परमात्मा प्यार में खोए रहने वाली आत्मा का मन स्वतः एकाग्र हो जाता है। उसे कार्य में मेहनत का अनुभव नही होगा। वह ऐसा महसूस करेगी करावनहार करा रहे है। निर्मित्त कर्मेन्द्रिया कार्य कर रही है। वह स्वयं के देहभाव से मुक्त हो जाएगी।