Wed. Feb 5th, 2025

यह साकार लोक है चरित्र लोक क्यांेकि यहां आत्मा अपना चरित्र बनाती भी है तो बिगाड़ती भी हैं। पूरे कल्प में आत्मा 83 जन्मो तक मंथर गति से अपने चरित्र को भी खोती जाती है परन्तु अन्तिम 84 वे जन्म में कुछ भाग्यशाली आत्माओ को अपने आदि मौलिक चरित्र के पुनर्निर्माण का मौका मिलता है। ऐसी मनुष्यात्माए ईश्वरीय महावाक्यो को सुन कर चरित्रहीन से चरित्रवान बनती है। इस प्रकिया में वे सूक्ष्म चित्र लोक में आना जाना करती हैं। वहां स्थूल काया नही बल्कि सूक्ष्म चित्रमय आकृति होती हैं। और आवाज या ध्वनि नही बल्कि संकल्पो से बातचीत होत है। वहां के मौन वातावरण में आत्माएं शुद्ध सात्विक संकल्पो से वार्ता करती है। चित्रलोक से भी पूरे निराकारी विचित्र लोक है। जहां न स्थूलदेह है, ना ही सूक्ष्म चित्रमय आकृति। वहां तो बस विचित्र बिन्दुरुप आत्माएं होती है। शिवबाबा भी निराकारी विचित्र रुप में स्थायी निवास करते है।

 

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