जैसी मान्यताएं होती हैं वैसा ही व्यवहार चलता हैं उदाहरण के रुप में सुख किसमें है? हरेक के जवाब भिन्न भिन्न हो सकते हैं। अपनी मान्यता अनुसार। कोई मानता है कि खाओ पीओ मौज करो इसी में सुख हैं। तो स्वाभाविक हैं कि वो खायेगा पीएगा और मौज करेगा। अगर कोई यह मानता है। कि दूसरों के लिए थोड़ा भी कुछ अच्छा करना सेवा सहयोग देना उसमें सुख अनुभव होता हैं। तो वो केवल अपना नही सोचेगा स्वकेन्द्री नही बनेगा औरो के लिये न कुछ सेवा कार्य करेगा।आवश्यक है कि हम मान्यताओं को सही करें।
अगर हमारी मान्यताएं गलत हैं, अयथार्थ हैं तो हमारा जीवन भी गलत ही चलता रहेगा। मान्यताएं सही हैं तो व्यवहार भी सही चलेगा। जब हमारे कर्म सही होगे तभी हम सदाकाल की सुख शान्ति समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं। आवश्यक यह है कि हम अपनी मान्यताओं को सही करे। उसके लिये हमारे पास मूल सनातन सत्यो का संपूर्ण ज्ञान होना चाहिए। हमारा जीवन और यह जगत जिन मूल सत्यों के आधार पर चलता हैं उनका सत्य ज्ञान जानना चाहिए। तब मान्यताओं का सत्यापन स्थापित कर सकते है।