परिवार और समाज दोनो ही बर्बाद होने लगते हैं जब समझदार चुप रहते हैं और नासमझ बोलने लगते है। मौन को स्वीकारोक्ति माना जाता है। और नासमझ की बात पर चुप रखना परिवार व समाज के हित में नही हैं। नासमझ को युक्ति सें समझानी देनी चाहिए। समझदार की बात को नासमझ व्यक्ति अक्सर स्वीकार नही करता हैं परन्तु समझदार का प्रेमभाव व कल्याणकारी भावना नासमझ पर प्रभाव छोडते है। समझदार दूसरे की व्यर्थ बातो को सुनते हुए भी अनसुना करते है। मानव जितना गुण सम्पन्न उतना मौन
सच्ची श्रेष्ठता नदी के समान होते हैं यह जितने गहरे होते हैं उतना ही कम शोर करते हैं। इसे अधजल गगरी छलकत जाए व थोथा चना बाजे घना के कहावतो से भी समझे जा सकते है। अधकचरा ज्ञानी अधजल गगरी ज्यादा प्रवचन करता है। और थोडी बाते करता है। मनुष्य घना बजता है। जल्दी थमता ही नही। बजते कलाई की घड़ी है। और बजती पैरो की पायल भी है।