मान लो अगर पानी को हम अधिकतम तापमान पर उबालते है। लेकिन बाद में वह अपनं मूल रुप स्थिाति में ठंड़ा हो जाते है। उसी प्रकार शांति मानव का स्वभाव और मुल गुण है। शांति के बिना सुखी जीवन जीना असंभव है। शान्ति का कोई भौतिक वस्तु नही है। दूसरो पर हिंसा करके हम सुकून से जी नही सकगे अर्थात दूसरो को असंतुस्ट कर के हम संतुष्ट भी नही हो सकेंगे। ईष्र्या, द्वेष घृणा से हम कुछ भी हासिल नही कर सकते है। वास्तव में इनसे हम खुद का ही नुकसान पहुंचाते है। ईष्र्या द्वेष आग है। जो एक दूसरे पर प्रयोग करने से पहले खुद को जलाती है। जैसे आग की तीली पहले खुद को जलाती है। ऐसे ही ईष्र्या द्वेष से हम खुद की शांति सुकून को नष्ट कर लेते है।