Thu. Sep 19th, 2024

संस्कारो के परिवर्तन का संस्कार जों कर्म बार बार करते हैं वें हमारे आदत बन जाते है। और पकी हुए आदतों को ही संस्कार कहते है। किसी नें ही ठीक बात ही कहा है। कि धागे से बने रस्सी को तोडना मुश्किल और आदत जो बन जाते हैं उसको छोडना मुश्किल आदत कैसे कार्य करते है। इसको हम एक उदाहरण के द्वारा समझेंगें। अगर हमारे घर में एक वाँशबेसिन है। जहा पर रोजाना सबेरे उठते है। और हाथ धोते है।

और एक दिन वाँशबेसिन में पानी नही था तो हमने मरकी से गिलास में पानी भरकर हाथ घो लिए यह बात तो सबेरे के समय के बात है। लेकिन नाश्ता करने के बाद जब हाथ धोने के लिए फिर से वाँशबेसिन पर गए तो लोग हमे देखकर हंसने लगे क्योकि हमें तो सबेरे ही पता था की वाँशबेसिन नल में पानी नही है। फिर भी हम दुबारा क्यों गए। क्योकि हमारे आदत पड़ गए की रोजाना हाथ वही धोते है। यह जानने के बाद भी वह पानी नही है। फिर भी हाथ धोने वही पहुंच गए। ज्ञान होते हुए भी आदत संस्कार हमें अपनी तरफ खीच लेते है।

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