Sat. Sep 13th, 2025

भगवान तो हमारे अन्दर ही विद्यमान है। और वे हमे सतत प्राप्त है। पर जिसके माध्यम से हमे उस सत्य की प्रतीति करनी है। उस मन के मैला होने के कारण वे हमे अप्राप्त लगते है। मान लीजिए कि दर्पण में अपने को देखते है। और दर्पण में तह की धुल जीम हुई है। तो मै अपना चेहरा उसमें नही देख पाएगे जैसे जैसे दर्पण के धुल साफ करेगें वैसे वैसे हमें अपना चेहरा साफ दिखाई देगें जब धुल पूरी तरह से साफ हो जायगी तब मै जैसा हूँ ठीक वैसा दर्पण में दिखाई दूँगा। इसी प्रकार भगवान को देखने की बात है। हम अपने मन के दर्पण में भगवान को देखते है।

 

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