आत्माभिमानी चेतना अर्थात् सदैव अपने को देह से अलग आत्मा समझकर जीवन जीना और औरो को भी चैतन्य आत्मा समझना। प्रत्येक व्यक्ति को इस सत्य की जानकारी होनी चाहिए कि उसके शरीर के अन्दर अवचेतन या अचेतन मन के गहरे तलो में दैवी गुणो का खजाना है। जो कि हमारे द्वारा सेवा में बुलाए जाने का इंतजार कर रहा है।
अब यह हमारा काम है कि उन दैवी गुणो को चेतन मन के स्तर पर लाया जाए और दिनचर्या में शामिल किया जाए। जब व्यक्ति को अपनी वास्तविक पहचान का एहसास हो जाता हैं कि वास्तव में वह एक चैतन्य शक्ति आत्मा है। प्रकाश का सूक्ष्म पुंज है। तो उसका एक नया मानसिक और आध्यात्मिक जन्म होता है। उनकी जीवन शैली सोचने तथा कार्य करने का तरीका पूरी तरह सें बदल जाते है। अब मनुष्य सोचता हैं कि न तो वह मिटटी का पुतला शरीर है। और नही कोई पशु है।