सबके मन में काम वासना फिर कैसे खुशहाली हो
स्वागत तब हम करे कृष्ण का ह्दय सिंहासन खाली हों
एक तख्त पर दो महाराजा, आसन नही जमाते है
एक कामजीत एक ज्ञान रहित आपस में ही टकराते है
बैकुण्ठनाथ की दुनियां में जब सुन्दर सुखद द्वारिका हो
मनमोहक सुन्दर झांकी हो राधा जैसी मलिका हो
सत्य प्रेम के चंन्दन से वह तिलक लगाने वाली हो
स्वागत तब हम करे कृष्ण का ह्दय सिंहासन खाली हों