किसी के स्वभाव संस्कार किसी के कठोर व्यवहार किसी से अपमानित होना या किसी सें दुख पाना, इन बातो सें जब गुजरते है। तो एक कटु अनुभव सदा के लिए स्मृति बनकर रह जाता है। वह स्मृति हमारी नैतिक व आध्यात्मिक उन्नति के मार्ग में एक रुकावट बन खडी हो जाती है। यहाँ ध्यान देने की बात यह है कि जिसने दुख दिया वह व्यक्ति रुकावट नही बनता लेकिन उसके प्रति हमारे मन में बनी नफरत की वृत्ति रुकावट बन जाती है। उस वृत्ति का परिणाम क्या होगा निच्श्रित रुप से हानि किसकी अन्य किसी की नही खुद हमारी हैं उस व्यक्ति के कमजोर स्वभाव के कारण जो दुख मिला वह तो अल्पकाल का था लेकिन उस दुख को स्मृति में रखने की हमारी कमजोरी ने उस दुख को स्थाई कर डाला।
माफ करना कायरता नही बल्कि परम वीरता है।
अगर कोई कहते हैं कि चलो जो हुआ सों हुआ, उसको माफ कर दो। तब जवाब मिलता है। क्यों एक तो उससे दुख पाया और ऊपर से माफ भी करे? अक्सर देखा गया है, जब किसी से दुख होते है। तब लोग उसको सब सिखाना या उसके साथ लेना उचित समझते है। न कि माफ करना बदला लेना यह बहादुरी और माफ करना यह कायरता समझते है। आप बताइए जब लोगो ने काँस पर चढ़ाकर हाथो और पैरो को किलो से ठोकी तो क्या जीसस क्राइस्ट ने भगवान से उन लोगो को सजा देने प्रार्थना की? नही इतिहास के पन्ने पर सोने के अक्षरो से लिखा है। कि क्राइस्ट नें उनको माफ करने की प्रार्थना भगवान से की थी। माफ करना कायरता नही बल्कि परम वीरता है।