आत्मा वह चेतन्य है। कण अर्थात ज्योतिबिन्दु है। जिसके मन बुद्धि और संस्कार रहते है। संस्कार में एक समान होता है। यदि हमारे संस्कार पवित्र और सुख शान्ति वाले है। तो हमे वैसा ही वातावरण मिलता है। यदि किसी आत्मा के अपवित्रत कें दुःख देने आदि के संस्कार होग
तो वह आत्मा वैसे ही परिवार में और वैसे ही वातावरण में शरीर रुप वस्त्र धारण करके का निभायेगी अब संगमयुग अर्थात कलयुग का अंत और सतयंग के प्रांरभ का समय है।