माँ थोडे में संतोष करती है। गीले मे सो जाती है। सबको खिला पिलाकर खुद रुखी सूखी खाती है। वसुंधरा सा सहनशील माँ के ह्दय विशाल तुम्हारा है। पूत कपूत सदा दोनो हित आंचल खुला तुम्हारा है। तुम लाखों में भारी हों जहां सदा महिलाओ का सम्मान होता आया है। स्वर्ग देवता बसें वहां यह वेदो में गाया है।
कर लो नारी जागरण निज शक्ति पहचान। नारी से है। जगत एकता सुंदरता और शान नारी शक्ति सें संचारित यह जग रुपी काया है।