मनुष्य के भीतर के अंधकार में डूबा हुआ आज का मनुष्य बाहरी रोशनी के ओर आकर्षित हो रहा है। बाहर का आकर्षण उसके अंदर के आकर्षण को नष्ट कर रहे है। जिससे वह अपने स्वाभिमान को भूलता जा रहा है। और इंसानियत का मार्ग छोड हैवानियत का मार्ग अपना रहा है। आज वह एक दूसरे को काँपी करने मे भी व्यस्त हो गया है। वह अपने पहचान भूलता जा रहा है। ऐसे में स्वयं परमात्मा पिता हमारे असली पहचान के स्मृति दिलाते है। कि आप आत्मा है। आपका रुप बिदुस्वरुप है। निराकार परमपित परमात्मा शिव हर आत्मा को बुराई रुपी अंधकार से अच्छाई रुपी प्रकाश में लें जाने के लिए इस धरा पर अवतरित हो चुके है।
नजर डालकर देखो तो अधिकांश लोग अच्छा बनने के स्पर्धा में एक दूसरे से तुलना करते है। और ही अपने मनोस्थिति बिगाड लेते है। वास्तव में आप अच्छा बनना चाहते हैं तों अपनी सभी इच्छाओं को भगवा को सौकर हल्के हो जाए।