कभी कभी न्याय केवल अदालतो में नही बल्कि दिलो में भी दिखाई देता है। छग उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एवं संरक्षक रमेश सिन्हा की मानवीय पहल ने इसी सोच को साकार किया है। न्याय व्यवस्था के मानवीय पक्ष को प्राथमिकता देते हुए उन्होने बाल गृहो में रह रहे दिव्यांग बच्चो के विकास के लिए जुलाई में बडा निर्णय लिया था उन्होने न्यायालयो से वसूले गए अर्थदंड की राशि करीब 4 लाख 2 हजार रुपए ऐसे बच्चो की शिक्षा स्वास्थ्य खेल सामग्री मानसिक विकास से जुडी गतिविधियो पर खर्च करने आदेश दिया था। इसी से प्रेरित होकर जिला विधिक सेवा प्राधिकरण दुर्ग ने एक 6 साल निर्धन बालक को नई जिंदगी की दिशा दी उत्कल नगर दुर्ग का यह मासूम अपनी माँ को खो चुका था। और पिता मजदूर था। बेटे पर ध्यान नही दे पाता था माँ की कमी और देखभाल की कमी से बच्चा गलत संगति में पडने लगा था जिससे उसका बचपन और भविष्य दोनो खतरे में थे। यह जानकारी मिलते ही जिला विधिक सेवा प्राधिकरण ने पैरालीगल वालेटियर की मदद से दस्तावेज जुटाए और बालक का प्रवेश संदीपनी बालक छात्रावास फरीद नगर भिलाई एवं वही स्थित शासकीय विद्यालय में कराया गया। अब वह सुरक्षित माहौल में पढ़ाई कर रहा।
