भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना का फ़ील्ड सर्वेक्षण प्रतिवेदन
पटना: बिहार के पटना ज़िले में हालिया वर्षा के कारण फसल क्षति का आकलन। हाल ही में पटना ज़िला के विभिन्न भागों में हुई हल्की से मध्यम वर्षा (20–30 मिमी) एवं तेज़ हवा के कारण फसल क्षति का आकलन करने को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना के वैज्ञानिकों की एक टीम ने गौरी पुंडा ग्राम पंचायत के अंतर्गत गौरी पुंडा, नसीरपुर, बलवा, मोमिनपुर एवं कसीमपुर गांव में फील्ड स्तर पर फसल क्षति का आकलन किया। इस क्रम में मुख्य उद्देश्य इस असमय मौसम की घटना का रबी की खड़ी फसल जैसे गेहूं, सरसों, मसूर, चना, मूंग, एवं मक्का तथा बागवानी फसलों जैसे आम और लीची पर प्रभाव का मूल्यांकन करना है। सर्वेक्षण किये क्षेत्रों में अधिकांश कृषि भूमि पर गेहूं की फसल, जो परिपक्व अवस्था में पाई गई और वर्षा के समय तक अधिकांशतः नहीं काटी पाई गई। भारी मिट्टी वाले क्षेत्रों में लगभग 10–15% गेहूं के खेतों में तेज़ हवाओं के कारण फसल गिर गई (लॉजिंग)। इससे यांत्रिक कटाई में कठिनाई आती है और यदि दोबारा वर्षा होती है तो दाने अंकुरित होने तथा कटाई के बाद क्षति की आशंका बनी रहती है। सरसों और चना की फसल अधिकांशतः कट चुकी पाई गई, लेकिन खेत में खुले में पड़ा उत्पादन नमी से नुकसान की चपेट में पाया गया। मसूर के खेतों में मामूली लॉजिंग के संकेत मिले, लेकिन कुल प्रभाव सीमित रहा। मक्का की फसल काफी प्रभावित हुई, कई खेतों में भारी लॉजिंग की रिपोर्ट मिली जिससे उपज में कमी और कटाई में कठिनाई की संभावना है। सकारात्मक पहलू यह रहा कि मूंग और हरी सब्जियों (“लीफी वेजिटेबल्स”) पर इस वर्षा का अनुकूल प्रभाव पड़ा और उनकी वृद्धि में सुधार तथा मिट्टी में नमी की उपलब्धता बढ़ी। बागवानी फसलों में आम एवं लीची के बागों में तेज़ हवाओं के कारण फूल एवं प्रारंभिक फलों का झड़ना देखा गया, विशेषकर ऐसे बागों में जो खुले में रहे। हालाकि, जो बाग हवाओं से सुरक्षित रहे, वहां यह वर्षा फल-निर्माण के लिए लाभकारी रही। खेतों से अतिरिक्त पानी की निकासी सुनिश्चित करें, जिससे जलभराव और जड़ों को क्षति से बचाया जा सके, जहां फसल गिर गई है, वहां 2–3 दिन रुककर सूखे मौसम में कटाई करना उचित रहेगा। जिससे दाने को अंकुरण से बचा जा सके। गीली अवस्था में कटाई से बचें, जिससे फफूंदी से क्षति न हो। फसल की पूरी तरह धूप में सुखाने के बाद ही थ्रेशिंग और भंडारण करें। गेहूं, सरसों और चना जैसी फसलों को वर्षा से बचाने के लिए तिरपाल या प्लास्टिक शीट से ढकें। यदि फसल भीग जाए तो उसे तुरंत फैलाकर सुखाएं। यदि रोग के लक्षण दिखें तो 2–3 ग्राम मैन्कोज़ेब प्रति लीटर पानी की दर से फफूंदी नाशक का छिड़काव करें। केवल अच्छी तरह से सुखाए गए दानों को ही थ्रेश करें और नमी-प्रतिरोधी बोरी या एयरटाइट कंटेनर में संग्रहित करें। केला एवं पपीता जैसी फसलों को आंधी से बचाने के लिए सहारा दें या बांधें। आम की फसल में फल-निर्माण के बाद यदि अब तक उर्वरक नहीं दिया गया है, तो 500 ग्राम डीएपी, 850 ग्राम यूरिया एवं 750 ग्राम एसएसपी प्रति पौधा की दर से आधी सिफारिशित मात्रा में दें। लीची में फल सेटिंग बढ़ाने को प्लानोफिक्स (4 मि.ली. प्रति 9 लीटर पानी) का छिड़काव करें एवं 500 ग्राम एमओपी व 750 ग्राम यूरिया प्रति पूर्ण विकसित पेड़ पर दें। किसानों को सलाह दी जाती है कि वे अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके) अथवा कृषि विस्तार केंद्रों से नियमित संपर्क में रहें और तकनीकी सलाह लेते रहें। ‘मौसम’ एवं ‘मेघदूत’ जैसे मोबाइल एप का उपयोग कर रीयल टाइम मौसम पूर्वानुमान एवं कृषि परामर्श प्राप्त करें। इसके अतिरिक्त, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना(पीएमएफबीवाई) या राज्य की फसल बीमा योजनाओं अंतर्गत दावा के लिए फसल क्षति के फोटो या वीडियो दस्तावेज़ अवश्य तैयार करें।