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सुबह “दीपक” बुझा तो क्या हुआ, रात भर जलता रहा…. जलता रहा.…..…

अवधेश कुमार शर्मा

आ गई मंज़िल, थका था, सो गया…
जिंदगी भर, राह में चलता रहा, सुबह “दीपक” बुझा तो क्या हुआ, रात भर जलता रहा…. जलता रहा.…

पश्चिम चम्पारण जिला की साहित्य और कला-संस्कृति की उर्वर भूमि रही है। पश्चिम चम्पारण जिला मुख्यालय बेतिया के कुमारबाग स्टेशन से के पास से लगभग 2 किलोमीटर दूर चुहड़ी नामक गांव में 15 मार्च 1933 को सोलोमन एंटोन और जोहना सोलोमन दंपत्ति के घर एक दीपक का जन्म हुआ। वह दीपक किशोरवय से क्रीड़ा के क्षेत्र में आगे बढ़ा तो युवा अवस्था में चम्पारण इलेवन के कप्तान, सेंटर फॉरवर्ड फुटबॉल खिलाड़ी के रुप में प्रसिद्ध हुआ। चुहड़ी के दीपक की प्रतिभा सिर्फ फुटबॉल तक सीमित नहीं रही, बल्कि बहुमुखी प्रतिभा के धनी कला, संस्कृति और साहित्य में विशिष्ट स्थान बनाया। साहित्यनुरागी युवा को दीपक एंथोनी के नाम से जाना पहचाना गया। उनकी कुशाग्र प्रतिभा का एक छोटा उदाहरण है कि 20 वर्ष की अल्पायु में दिल्ली स्थित राजभवन में 1953 ई. में भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद से बिहार एकेडमी ऑफ म्यूजिक डांस एंड ड्रामा समूह के सफल नेतृत्व को बेस्ट ऑल राउंडर का पुरस्कार मिला। फिर दीपक एंथोनी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने पश्चिम चम्पारण डिस्ट्रिक्ट स्पोर्ट्स एसोसिएशन के कार्यकारी और चयन समिति के 1973 से 1981 तक सक्रिय सदस्य रहे। उनकी रचनाएं बच्चों से बड़ों को खूब पसंद की जाती रही। कहते हैं कि साहित्यकार, कवि, रचनाधर्मी और कलमकार अधिकांशतः स्वतंत्र विचार और ख्याल के होते हैं। इसकी बानगी है कि खेल, साहित्य, कला और रंग मंचीय गतिविधि के दृष्टिगत उन्होंने बिहार सरकार के तत्कालीन उत्पाद अवर निरीक्षक पद पर नियुक्ति प्रस्ताव को ठुकरा दिया।
ललिता मिडल स्कूल मोतिहारी के प्रधान अध्यापक पद त्यागकर उन्होंने 1966 में दीपक शिशु केंद्र रामनगर में प्रारम्भ किया।
चम्पारण को दो विभूति गोपाल सिंह नेपाली और दीपक एंथोनी समकालीन रहे। दोनों की अमिट छाप कला, साहित्य और क्रीड़ा के क्षेत्र छोड़ दिया।

उनकी रचना जाने कितनी सांस लिए जलता है
जाने क्यों इतनी प्यास लिए जलता है
इतना तक तो कोई भी कह सकता है
‘दीपक’ भी कोई आस लिए जलता है….

‘तुम बुझने का वरदान कभी मत देना/ जलने में ही आराम मुझे मिलता है।’.… नि: संदेह कोई ‘दीपक’ ही ऐसी कामना कर सकता है।
एन्थोनी दीपक की उपर्युक्त रचनाओं में उनकी आत्मीयता की झलक मिलती है। साहित्य की विविध विधाओं के संग संगीत, खेल, रंगकर्म व कई अन्य क्षेत्रों में विशिष्टतापूर्वक मूल्यवान योगदान रहे हैं। एन्थोनी दीपक वस्तुतः बिहार के अन्य प्रतिभाओं की भांति अपेक्षित ही रह गए। तात्पर्य यह कि हिंदी संसार उनका वास्तविक मूल्यांकन नहीं किया जा सका।
पश्चिम चम्पारण (बिहार) चुहड़ी में जन्मे एंथोनी दीपक ने रामनगर को कार्य स्थल बनाया और अंततोगत्वा
03 मार्च 2008 को उन्होंने भौतिक लोक का त्याग कर अलौकिक परलोक सिधार गए। उनके परलोक सिधारने के बाद रामनगर में उनकी प्रतिमा स्थापित करने की बात हुई, खूब चर्चा हुई, उनके नाम पर कतिपय लोगों ने अखबारों में खूब फ़ोटो छपवाया, अलबत्ता 16 वर्ष गुज़र गए, दीपक एंथोनी का परिवार, उनके पुत्र अरुण एंथोनी की आंखे रामनगर में उनकी प्रतिमा देखने को पथरा सी गई है। उन्हें प्रसिद्धि तो उनके गीतों ने दिलाया, अलबत्ता उन्होंने हिंदी गद्य का भंडार भरने में भी तन्मयता पूर्वक सार्थक योगदान किया है।
उनकी अन्य रचनाओं में…
तुम चाह रहे धरती पर स्वर्ग उतर आए/ मैं चाह रहा धरती ही सजे संवर जाए/ कण – कण का रुप निखर जाए।
स्वाधीनता दिवस के अवसर शहीदों की याद में उनकी सशक्त व मार्मिक चित्रण…
‘यह किसकी याद उभर आती है मन में,
हर बार घटा रो देती है सावन में!’

प्रकाशित रचनाओं में ..
‘परिचय (1958), ‘ हिंदुस्तान जागा है’ (1962), ‘दीपक के गीत’ व ‘साथी आओ नाचो – गाओ’ (1967)। इनके अलावे दीपक एंथोनी की असंख्य रचनाएं असंकलित हैं। इनमें बहुतेरी रचनाएं आर्यावर्त, साप्ताहिक हिंदुस्तान व धर्मयुग समेत उस दौर में प्रतिनिधि पत्र – पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है। आकाशवाणी से इनके गीत लंबे समय तक गूंजते रहे। मैंने लखनऊ स्थित उनकी पत्नी के पास अप्रकाशित रचनाएं देखी है। उनके उपयोग के वाद्ययंत्र देखे। उनकी पत्नी और पुत्र रामनगर में उनकी प्रतिमा स्थापित नहीं होने से क्षुब्ध हैं।

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By Awadhesh Sharma

न्यूज एन व्यूज फॉर नेशन

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